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परिमाण द्वार
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व्यवहार परमाणु उपर्युक्त गाथा ९५ के विवेचन में अनुयोगद्वार में बताये गये ६ भेदों में से 4वां भेद- सूक्ष्म कार्मणवर्गणा रूप है।
प्रश्न – क्या व्यवहार परमाणु को पुष्कर संवर्तक महामेव गीला कर सकता है?
नहीं ।
प्रश्न- क्या उसे अग्नि जला सकती है? नहीं ।
स्कन्ध विवेचन
खंथोऽतपसो अत्येगइओ जयम्मि छिज्जेज्जा ।
भिजेज्ज व एवइओ (एगयरो) नो छिज्जे नो य भिज्जेज्जा ।। ९७ ।। गाथार्थ - अनन्त प्रदेशों से निर्मित स्कन्ध में से कितने ही स्कन्ध जगत में छेदे जा सकते हैं भेदे जा सकते हैं और कितने स्कन्ध न छेदे जा सकते हैं। और न भेदे जा सकते हैं।
विवेचन – स्कन्ध स्थूल तथा सूक्ष्म दोनों प्रकार के होते हैं, अतः कोई स्थूल स्कन्ध भाले, तलवार आदि से छेदा भेदा जा सकता है तथा कोई सूक्ष्म स्कन्ध भाले, तलवार आदि से भी छेदा भेदा नहीं जा सकता।
परमाणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च बालस्स ।
लिक्खा जूया य जवो अट्टगुणविवडिया कमसो ।। ९८ ।।
गाथार्थ — परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लीख, जूँ, जव, यह क्रम से एक दूसरे से आठ गुणा बड़े हैं।
विवेचन - यहां परमाणु के बाद ऊर्ध्वरेणु शब्द लेना क्योंकि आगम में अनेक जगह परमाणु, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु इस प्रकार देखने में आया है। ये क्रमश: एक दूसरे से आठ गुणा बड़े हैं। यहां परमाणु से तात्पर्य व्यावहारिक परमाणु अर्थात् श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका से है।
ऊध्वरेणु
आठ व्यवहारिक परमाणु मिलने पर एक ऊर्ध्वरेणु बनती है। जो खिड़की आदि में सूर्य के प्रकाश में इधर-उधर उड़ती दिखाई देती है।
त्रसरेणु : पूर्वदिशा की वायु से प्रेरित हो उड़े वह त्रस रेणु है। रथरेणु : चलते रथ के चक्र के कारण उड़ने वाली धूल रथरेणु हैं। : आठ रथरेणु से देवकुरु - उत्तरकुरु के मनुष्य का एक बालाग्र होता है। उन आठ बालाब से हरिवर्ष, रम्यक्क्षेत्र के मनुष्य का एक
बालाघ