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जीवसमास सूच्यंगुल में मात्र लम्बाई होती है, प्रतरांगुल में 'लम्बाई और चौड़ाई होती है तथा घनांगुल में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई- इन तीनों का ग्रहण होता है।
सध्यंगुल-सिद्धान्तत: सूच्यंगल में असंख्य प्रदेश होते हैं लेकिन वे एक सीधी रेखा में होते हैं उनमें चौड़ाई और मोटाई नहीं होती मात्र लम्बाई होती हैं। इसमें प्रदेश इसप्रकार स्थापित होते है कि इसका आकार सूई (सूचिका) के समान बने ।
प्रतरांगुल-वर्ग को प्रतर कहते हैं। किसी भी राशि को दो बार लिख कर गुणित करने पर जो संख्या बने वह वर्ग है। वर्गाकार या आयताकार अंगुल को प्रतरांगुल कहते हैं अर्थात् जो एक अंगुल लम्बा और एक अंगुल चौड़ा हो वह प्रतरांगुल है। इसमे लम्बाई और चौड़ाई दोनों होती है।
घनांगुल- घनांगुल में मोटाई, लम्बाई तथा चौड़ाई होती है। वर्गाकार में उसी संख्या को उसी संख्या से दो बार गुणित किया जाता है, जबकि घनाकार उसी संख्या को उसी संख्या से तीन बार गुणित किया जाता है। घनांगुल एक अंगुल लम्बा, एक अंगुल चौड़ा और एक अंगुल मोटा होता है। प्रमापों की उपयोगिता
देहस्स असएण 3 गिहसपणाई य आयमाणेणं)
दीवुदहिभवणवासा खेत्तपमा पमाणेणं।।१०४।। प्रमाणद्वारं २
गाथार्थ- उत्सेधांगुल से देह आदि को, आत्मांगुल से घर, विस्तर आदि को तथा क्षेत्रप्रमाण प्रमाणांगुल से द्वीप, समुद्र, भवनवास आदि को मापा जाता है।
इति क्षेत्र परिमाणा