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परिमाण-द्वार
पउमं कमलं कुमुयं तुडियमडङमवव हायं चैव ।
अउमंग अउय पउयं तह सीसपहेलिया घेव।।११५।।
गावार्थ- एक पूर्व का परिमाण सत्तरखरन छप्पनअरब (७०,५६,०००००००००) जानना चाहिये। ११३।
इस प्रकार पूर्वाग, पूर्व, नथुताग, नयुत, नलिनांग, नलिन, महानलिनांग, महानलिन होते हैं। ११४।
पुनः आगे पद्म, कमल, कुमुद, त्रुटित, अटट, अवव, हूहुक अयुतांग, अयुत, प्रयुत्त शीर्ष प्रहलिका आदि संख्याएं होती हैं। ११५।
विवेचन--एक पूर्व में ७०५६००००००००० वर्ष होते हैं। उन्हें पुन: ८४ से गुणा करने पर एक नयुतांग होता है। फिर क्रमशः ८४-८४ से गुणा करते जाने पर एक नयुत, नलिनांग, नलिन, महानलिनांग, महानलिन, पद्यांग, पद्म, कमलांग, कमल, कुमुदांग, कुमुद, त्रुटितांग, त्रुटित, अट्टांग, अट्ट, अववांग अवच, हुरूआंग, हूहुक, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत शीर्षप्रहेलिकांग तथा शीर्षप्रहेलिका बनती हैं। इस शीर्षप्रहेलिका का संख्या परिमाण १९४ अंक है अर्थात् ७५८२, ६३२५, ३०७, ३०१०, २४११, ५७९७, ३५६९, ९७५६, ९६४०, ६२१८, ९६६८, ४८०८, ०१८३, २९६ इन ५४ अंकों पर १४० बिन्दी लगाने से (शून्य लगाने से) १९४ अंक रूप शीर्षप्रहेलिका बनती है।
मूल गाथाओं में इन सभी नामों को स्पष्ट नहीं किया गया है उसे स्वमति से स्पष्ट कर लेना चाहिये।
पूर्वांग, पूर्व, नयुतांग, नयुक्त आदि कुल मिलाकर २८ हैं। इन्हें परस्पर गुणा करने पर एक शीर्षप्रहेलिका बनी है। व्याख्याप्रशप्तिसूत्र के छठे शतक के सातवें उद्देशक में तथा अनुयोगद्वार सूत्र ३६७ में भी यह गणना बतायी गई हैं, परन्तु वहाँ गणना का क्रम इस प्रकार है
अट्टांग, अट्ट, अववांग, अवव, हुकांग, हुहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्ध, नलिनांग, नलिन, अर्थनुपूरांग, अर्थनुपुर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका। - गणना क्रम में अन्तर होने पर भी शीर्ष प्रहेलिका तक वही गणना बनती है। अत: नाम के क्रम में अन्तर होने पर भी संख्या में किसी प्रकार का अन्तर नहीं आता है।
___ इस प्रकार गणित विषयक जितना काल हैं उसकी गिनती करायी गई, इससे आगे की संख्या को उपमा (पल्योपम, सागरोपमादि) से बतायेंगे।