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जीवसमास
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सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम की उपयोगिता
एएण खेत्तस्सगरवमाणेणं हवेज्ज नाथव्वं ।
पुढविदगअगणिमारुयहरियतसाणं च परीमाणं ।। १३३ ।।
गाथार्थ - इस सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम से पृथ्वीकाय, अप्काय तेजकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय तथा सकाय जीवों का परिमाण जान सकते हैं। विवेचन - उपर्युक्त सभी जीवों की संख्या को सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम से जान सकते हैं।
(१) उद्धारपल्योपम - गाथा ११८ तथा ११९ में पल्योपम का वर्णन किया है । उसमें बताये गये पल्य कुएँ को सात दिन तक के बालक के बालाओं से ठसाठस भरना । "इवलांक प्रकाश" में कहा गया है कि वे केशाम्र इतनी सघनता से भरे जाये कि चक्रवर्ती की सेना भी उस पर से निकल जाय तो भी वे दबे नहीं। उनमें से प्रत्येक बाल को एक-एक समय में निकालने में जितने समय में वह कुंआ खाली हो उसे बादर या व्यवहार उद्धारपल्योपम कहते हैं।
इसी तरह के उक्त बालाय के असंख्यात अदृश्य ऐसे खण्ड किये जाये जो विशुद्ध नेत्र वाले उद्यस्थ पुरुष के दृष्टिगोचर होने वाले सूक्ष्म पनक (काई) के शरीर से असंख्यात गुणा सूक्ष्म हो। ऐसे सूक्ष्म बालाओं के खण्डों से भरा कुंआ प्रतिसमय एक-एक बालध- खण्ड निकालने पर जब खाली हो तो उसे सूक्ष्म उद्वार पल्योपम कहते हैं। इसमें संख्यात वर्ष कोटि परिमित काल लगता है।
(२) अद्धापयोपम - उपर्युक्त प्रकार से भरा हुआ कुंआ, उसमें से हर १०० वर्ष बाद एक बाल निकाला जाय और जितने समय में वह खाली हो जाय तो वह बादर या व्यवहार अन्डा पल्योपम कहलाता है।
जाय-:
उसी कुंए से सूक्ष्म बालाय खण्डों को जब १००-१०० वर्ष में निकाला - और जब वह खाली हो जाये तो उसे सूक्ष्म अन्या पल्योघम कहते हैं। यह असंख्यात वर्ष कोटि परिमाण वाला होता है। जबकि बादर अद्धा पल्योपम अनेक संख्यात वर्ष कोटि परिमाण वाला होता है।
(३) क्षेत्रपल्योपम - उपर्युक्त रीति से भरे बालानों को जितने आकाश प्रदेश स्पर्शित या अस्पर्शित किये हुए हैं। उन स्पर्शित या अस्पर्शित आकाश प्रदेशों में से प्रत्येक समय एक आकाश प्रदेश को निकालने में जितना समय लगे वह बादर या व्यवहार क्षेत्रपल्योपम है। इसमें असंख्यात अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी जितना काल होता है।