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सत्पदप्ररूपणाद्वार
हुए भी कार्मण काययोग होता है। मिश्रगुणस्थानवतों जीव कभी मरण को प्राप्त नहीं करता है।
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विवेचन - जीव के शरीर छोड़ने तथा नया शरीर प्राप्त न होने तक विग्रह गति करते समय उसे कार्मण काययोग होता है। गाथा ५७ में छ: काययोग का वर्णन किया, इस गाथा में सातवें कार्मण काययोग का वर्णन किया गया हैं कि वह कहाँ कहाँ होता है।
केवली को समुद्घात के मात्र तीसरे चौथे तथा पाँचवे समय में ही कार्मण काययोग होता है।
प्रश्न – केवली समुद्घात के किस समय में केवली को कौन-सा काययोग होता हैं ?
उत्तर- - केवली भगवन्त का शरीर औदारिक होने के कारण प्रथम एवं अन्तिम समय में औदारिक काययोग होता है। दूसरे, छठे तथा सातवें समय में आदारिक मिश्र काययोग होता है तथा तोसरे, चौथे व पाँचवे समय में कार्मण काययोग होता है।
मिश्रगुणस्थानवतीं जीव मरण को प्राप्त नहीं होता, अतः मिश्र दृष्टि गुणस्थान में जीव की विग्रहगति सम्भव नहीं होती है।
गाथा ५६,५७,५८, में योगों की स्थिति इस प्रकार है
१. मिध्यादृष्टि, सासादन तथा अविरतसम्यग्दृष्टि में तेरह योग-चार प्रकार का मनोयोग, चार प्रकार का वचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र तथा कार्मण काययोग ये तेरह योग होते हैं।
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२. मिश्रदृष्टि में दस योग– चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिककाययोग तथा वैक्रियकाययोग होते हैं।
३. देशविरति में ग्यारह योग-उपर्युक्त दस एवं वैक्रियमिश्रयोग होते हैं । ४. प्रमत्त संयत में तेरह योग- उपर्युक्त ग्यारह तथा आहारकद्विक योग
होते हैं।
५. अप्रमत्त से क्षीणमोही में नौ योग –चार मनोयोग, चार वचनयोग तथा औदारिककाययोग होते हैं ।
६. सयोगी केवली को सात योग– सत्य और असत्य अमृषा रूप मनोयोग तथा वचनयोग – ये ४ एवं औदारिक, औदारिकमिश्र, कार्मण ( समुद्घात करते समय) योग होते हैं।