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सत्पदप्ररूपणाद्वार
विभिन्न गुणस्थानों में सम्यग्दर्शन की मात्रा मे अन्तर हो सकता है परन्तु गुणवत्ता में अन्तर नहीं होता है। अत: क्षायिक सम्यग्दर्शन चतुर्थ गुणस्थानवती जीवों से लेकर सिद्धावस्था तक समान कहा गया है।
माणिया य मणुपा रपणाए असंखवासतिरिया य। तिविहा सम्महिठ्ठी वेगउवसामगा सेसा।।८।।
गाथार्थ- वैमानिक देव, मनुष्य, रत्नप्रभा नारकी के नारक तथा असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यश्च, इन सभी में तीनों प्रकार के सम्यक्त्व हो सकते हैं। शेष सभी जीवों को या तो क्षायोपशमिक या औपशमिक सम्यक्त्व होता है। विदेचन-वैमानिकों में तीन प्रकार का सम्यक्त्व कैसे होता है ?
वैमानिक देवों में अनादि काल से मिथ्यादृष्टि रहा हुआ कोई जीव जब प्रथम बार सम्यक्त्व को प्राप्त करता है तो अन्तरकरणकाल (गाथा के अन्त में स्पष्टीकरण किया गया है) के काल में उसको प्रथम अन्तर्मुहूर्त में मात्र औपशमिक सम्यग्दर्शन होता है। औपशमिक सम्यक्त्व के बाद तुरन्त ही शुद्ध सम्यक्त्व के पुञ्ज प्रदेशों को संवेदन करने पर उसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है। इसी प्रकार यदि कोई क्षायोपशमिक सम्यक्त्व वाला मनुष्य या तिर्यश्च मरकर वैमानिक देवों में उत्पत्र होता है तो उसे भी पारभविक क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है।
___ जब कोई मनुष्य वैमानिक देव का आयुष्य बांधने के पश्चात् क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त करे तो वह आयुष्य का बंध हो जाने के कारण आगे की श्रेणी आरोहण नहीं करता है अर्थात् उसका मोक्ष सम्बन्धी विकास क्रम रुक जाता है क्योंकि अग्रिम गुणस्थानों में श्रेणी आरोहण करने पर तो निश्चय मोक्ष होगा। ऐसा मनुष्य मरकर वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। अत: वैमानिक देवों को पारभविक क्षायिक सम्यक्त्व भी हो सकता है। वैमानिक देव के तद्भविक क्षायिक सम्यक्त्व नहीं होता है, क्योंकि क्षायिक सम्यग्दर्शन का प्रारम्भ मात्र मनुष्य भव में ही होता है। मनुष्यों में तीन प्रकार का सम्यग्दर्शन संभव है
___ संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों को तीनों ही प्रकार के सम्यग्दर्शन सदभविक हो सकते हैं किन्तु जब क्षायोपशमिक सम्यक्त्व से युक्त देव मनुष्य जन्म ग्रहण करता है तो उसे पारभविक क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है। इसी प्रकार क्षायिक सम्यक्त्व से युक्त देव जब मनुष्य बनता है तो उसे पारभविक क्षायिक सम्यादर्शन होता है।