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सत्पदमरूपणाद्वार
क. साकारोपयोग (ज्ञान) के भेद- १. मलिशान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधि-ज्ञान, ४. मनःपर्यवज्ञान, ५. केवलज्ञान, ६, मति-अज्ञान, ७. श्रुत-अज्ञान तथा ८. विभंगज्ञान।
ख, अनाकारोपयोग (दर्शन) के भेद-१, चक्षुदर्शन, २, अचक्षुदर्शन, ३. अवधिदर्शन और ४ केवलदर्शन।
प्रश्न- साकार और अनाकार उपयोग में क्या अन्तर है?
उत्तर-जो बोधवस्त को विशेष रूप से जानने वाले हैं वे साकारोपयोग हैं। जैसे- यह आम का पेड़ है।
जो वस्तु के सामान्य रूप को जानने वाला है वह अनाकारोपयोग है। जैसेयह कुछ है।
प्रश्न-उपयोग को सामान्य-विशेषात्मक कहा गया है यह तो समझ में आ गया है, परन्तु दर्शनोपयोग को अनाकार कहा गया यह स्पष्ट नहीं हुआ।
उत्तर- प्रत्येक उपयोग अन्ततः साकार अर्थात् सविकल्प होता है, किन्तु अपनी उत्तर अवस्था की अपेक्षा से पूर्व-पूर्व अवस्थाओं में यह अनाकार अर्थात् निर्विकल्प कहा जाता है। प्रत्येक विशेष ज्ञान में भी जो सामान्य का ग्रहण है उसकी अपेक्षा से ज्ञान के पूर्व की अवस्था को दर्शन कहा जाता है। अत: दर्शन अनाकार अर्थात् निर्विकल्प होता है। उपसंहार
एवं जीवसमासा बहुमेया वनिया समासेणं ।
एवमिह भावरहिया अजीवदव्या उ विजेमा ।।८४।। गाथार्थ- इस प्रकार मैंने बहुत भेद वाले जीवसमासों का संक्षेप में वर्णन किया। अब इसी प्रकार भाव रहित अर्थात् चेतना रहित अजीव द्रव्यों को भी जानना चाहिये।
विवेचन-इस प्रकार यहाँ जीवों के मिथ्यादृष्टि, सास्वादन आदि गुणस्थानों की अपेक्षा से तथा गति, इन्द्रियादि मार्गणाओं की अपेक्षा से विवेचन किया गया है।
अब जीव का वर्णन करने के पश्चात आगे अजीव का वर्णन करेंगे। अजीव
तेण वण अम्माणम्मा आगास अरुविणो तहा कालो । खंबा देस पएसा अणुतिऽवि व पोग्गला रूबी ।। ८५।।