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जीवसमास तिलोयपण्णत्ति (१/१०२-१०६) में भी क्षेत्र नापने के प्रमाणों का कथन किया गया है किन्तु वहाँ एक “कष्कु' नाम अधिक है तथा उसका परिमाण दो हाथ बतलाया गया है। वहां क्रम इस प्रकार है- छह अंगुल का एक पाद, दो पाद की एक वितस्ति (बालिश्त), दो वितस्ति का एक हाथ, दो हाथ का एक किष्कु, दो किष्षु का एक.दण्ड। दण्ड, युग, धनुष, नालिका, अक्ष, और मुसलये सभी चार हाथ परिमाया है। दो हजार नाप का एक होगा तशा चार कोम का एक योजन होना है।
(४) गणिम प्रमाप-जिससे गणना (गिनती) की जाये, वह गणिम एक, दस, सौ, हजार, दसहजार., लाख, दस लाख, करोड़, दस करोड़, आदि। जैन परम्परा में गणनीय संख्या १९४ अंक अर्थात् एक पर १९३ शून्य परिमाण है, जिसे गाथा ११३-११४-११५ में स्पष्ट किया गया है।
(५) प्रतिमान- जिसके द्वारा बहुमूल्य वस्तुओं को तौला जाता है उसे प्रतिमान प्रमाण कहते हैं। १. गुञ्जा (रत्ती) २. काकणी, ३. निष्पाव, ४. कर्ममाषक, ५. मण्डलक और ६, सुवर्ण। पाँच गुञ्जाओं अर्थात् रत्तियों का तथा चार काकणियों का या तीन निष्पाव का एक कर्ममाषक होता है। १२ कर्ममाषक या ४८ काकणियो का एक मण्डलक होता है। १६ कर्ममाषक या ६४ काकणियों का एक स्वर्ण मोहर होता है।
इसमें गुञ्जा प्रथम तोल है। गुञ्जा एक लता का फल है जो मूंग जितना, अण्डाकार आधा लाल तथा आधा काले रंग का होता है।
द्रव्य प्रमाप समाप्त हुआ। अब क्षेत्र प्रमाप का वर्णन करते हैं।