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परिमाण-द्वार तरल पदार्थ में शिखा बन पाना संभव न होने से उनके माप में धान्य के पाप से चौथाई भाग अधिक मापना चाहिये।
रस सम्बन्धी प्रमाप में चारपल की एक चतष्ठिभागिका, आठ पल की एक द्वित्रिशिभागिक, सोलह पल की एक षोडश भागिका, बत्तीस पल की एक अष्टभागिका, चौसठ पल की एक चतुर्मागिका, एक सौ अट्ठाईस पल की एक अर्धमानी, दो सौ छप्पन पल की एक मानी होती है। पान सम्बन्धी प्रमाप के स्वरूप को बताने के बाद उन्मान सम्बन्धी प्रमाप का स्वरूप बताते हैं।
कंसाइयमुम्पाणं अवमाणं व होई दंडाई । - पडिमाणं धरिमेसु य भणियं एक्काइयं गणिमं ।।८९।।
गाथार्थ- कांसे आदि अल्पमूल्य की वस्तुओं आदि को तौलने के उन्मान प्रमाप, कपड़े, भूमि आदि को मापने के दण्ड आदि अवमान प्रमाप, स्वर्णादि तौलने का प्रतिमान प्रमाप तथा संख्या आदि से मापा जाने वाला गणिम प्रमाप है।
विवेचन-मान प्रमाप की चर्चा कर चुके हैं, अब शंष चारा प्रमाप की चर्चा की जाती है।
(२) उन्मान प्रमाप-अब उन्मान प्रमाप का स्वरूप बतलाते हैं। जो वस्तु तौलकर दी जाती है और जिसके तौलने के साधन तराजू, बटखरे आदि होते हैं उसे उन्मान प्रमाप कहते हैं। उसका प्रमाप निम्न प्रकार का है- १. अर्धकर्ष, २. कर्ष, ३. अर्धपल, ४. पल, ५, अर्धतुला, ६. तुला, ७. अर्धभार और ८. भार। इससे अल्प मूल्य की धातुओं एवं अन्य वस्तुओं के परिमाप को जाना जाता है। अर्धकर्ष तोलने का सबसे कम भार का बदखस है। सम्भवतः कर्ष तोले के समान कोई माप रहा होगा। छटांक, सेर, मन बनाने का यही आधार है। अर्धकर्ष, कर्ष आदि प्राचीन मागध मान थे।
देउवणूजुगनालिय अम्खो मुसलं च होइ बहत्वं । दसनालिषं च रj वियाण अवमाणसण्णाए ।।१०।।
गाथार्थ- दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मूसल ये सभी चार हाथ परिमाण होते हैं। दस नालिका अर्थात् चालीस हाथ की एक रज्ज होती है। ये सभी अवमान कहलाते हैं।
विदेखन
(३) अवमान प्रमाप-- वास्तु (घर), भूमि आदि को हाथ के द्वारा, खेत को दण्ड द्वारा, मार्ग को धनुष द्वारा और खाई, कुंआ आदि को नालिका द्वारा नापा जाता है।