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परिमाण द्वार
१. द्रव्य (परिमाण)
दव्वे खेत्ते काले भावे य चउब्विहं पमाणं तु ।
दव्यपएसविभागं
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पसगाइयमणंतं ॥८७॥
गाथार्थ - द्रव्य क्षेत्र, काल तथा भाव- ये चार प्रकार के परिमाण हैं। इसमें द्रव्य परिमाण के प्रदेशपरिमाण (अविभाज्य परिमाण) तथा विभागपरिमाण (विभाज्य परिमाण) - ये दो भेद हैं। द्रव्य का प्रदेश परिमाण ( अर्थात् प्रदेशों की संख्या के आधार पर एक प्रदेश से लेकर अनन्त प्रदेश तक जानना चाहिये । प्रस्तुत ग्रन्थ में परिमाण के अर्थ में 'प्रमाण' शब्द का प्रयोग हुआ है अत: प्रमाण शब्द के विभिन्न अर्थ जान लेना अपेक्षित है।
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प्रमाण शब्द का अर्थ - बोलचाल की भाषा में प्रमाण शब्द का प्रयोग अनेक अधों में किया जाता है। शब्दकोश में प्रमाण के निम्न अर्थ दिये गये है यथायथार्थज्ञान, मान, माप, प्रमाप, परिमाण, संख्या आदि।
प्रमाण शब्द "प्र" तथा "माण" इन दो शब्दों से निष्पन्न हैं। जिसके द्वारा प्रकृष्ट रूप से पदार्थ को जाना जाय या मापा जाये वह प्रमाण है।
इसमें द्रव्यप्रमाण (परिमाण) के दो भेद हैं- (१) प्रदेश और (२) विभाग। द्रव्य का सूक्ष्मतम अविभाज्य अंश प्रदेश कहा जाता है। पदार्थ से अलग हुआ यह प्रदेश ही परमाणु कहा जाता है। कोई भी द्रव्य / पदार्थ एक प्रदेशी से लेकर अनन्त प्रदेशी हो सकता है। प्रस्तुत ग्रंथ में द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव की अपेक्षा से प्रमाण का विवेचन गाया संख्या ८७ से १४० तक किया है।
अनुयोगद्वारसूत्र में भी प्रमाण का विस्तार से वर्णन किया गया है। स्थानाम सूत्र स्थान ४ में " चव्विहे पमाणे पनते" कहकर चार प्रमाणों का विवरण दिया गया है।
प्रस्तुत गाथाओं में प्रमाण शब्द का प्रयोग मुख्यतः माप-तौल सम्बन्धी विभिन्न अवधारणाओं के विवेचन के सन्दर्भ में हुआ है। अतः इस सन्दर्भ में हमने प्रमाण शब्द का अनुवाद परिमाण या प्रमाप ही किया है। क्योंकि हिन्दी भाषा में इस अर्थ में यही शब्द अधिक प्रचलित है।