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जीवसमास गाठाणवगाहूणलक्सणाणि कमसो य वसणगुणो य । रूवरसगंधफासाई कारणं कम्मबंधस्स ।।८६।।
-सत्रायणाद्वारं ११ गाथार्थ-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय तथा काल- ये सभी अरूपी अजीव द्रव्य हैं। पुद्गल-स्कन्ध, देश, प्रदेश तथा परमाणु के रूप में रूपी द्रव्य है।
उपर्युक्त चारों द्रव्य क्रम से गति, स्थिति, अवगाहन तथा परिवर्तन लक्षण वाले हैं। रूप, रस, गन्ध तथा स्पर्श गुणवाला कर्मबन्धन का कारणभूत पुद्गल द्रव्य है।
विवेचन-पूर्वगाथाओं में जीव द्रव्य का विभिन्न दृष्टियों से विवेचन किया गया था। अब अजीद इनाही मामास जानकारी दी जाती है। अजीत हा...अरूपी तथा रूपी ऐसे दो प्रकार का है। इनमें भी अरूपी द्रव्य चार प्रकार का है- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय तथा काल।
जीव तथा पदगल के गति में सहायक द्रव्य धर्मास्तिकाय है। इसी प्रकार उनको स्थिर रहने में सहायक द्रव्य अधर्मास्तिकाय है। पदार्थों को अवकाश देने वाला द्रव्य आकाशास्तिकाय है तथा पदार्थों के परिवर्तन में सहायक द्रव्य काल है।
रूप चाइन्द्रिय का, गन्ध प्राणेन्द्रिय का, रस जिलेन्द्रिय का तथा स्पर्श स्पर्शन्द्रिय का विषय है। इन इन्द्रिय विषयों का निमित्त पाकर ही जीव ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध करता है।
कारण की उपस्थिति में ही प्राय: कार्य की निष्पत्ति सम्भव है। अतः कहा गया है कि यह पुद्गल द्रव्य कर्मबन्धन का कारण है। यद्यपि कर्मबन्धन में यह निर्मित मात्र है उपादान कारण तो आत्मा के रागादि मात्र हैं। कार्य निष्पत्ति में सहायक होने से इन्हें निमित्त कारण कहा जाता है। यद्यपि ये निमित्त ज्ञानी के लिए बन्धन का कारण नहीं होते हैं। ज्ञानी तो इन बन्धन के कारणों को ही मोक्ष का कारण बना लेते हैं।
प्रथम सतपस्यणाद्वार समाप्त