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जीवसमास माणुम्माणपमाणं पडिमाणं गणियमेवयमेव य विभागं।
पत्य (एत्य) कुडावाइ धन्ने बउभागविवडियं च रसे।।८८।।
गायानाप वे. १.मान, २. उ . म., . प्रतिमान तथा ५. गणिम- ये पाँच विभाग बतलाये गये है। उसमें प्रस्थ (अंजुलि), कुड़व (अन्न मापने का माप विशेष) आदि मान प्रमाप है। ये चार-चार गुण वृद्धि वाले होते हैं। जैसे चार प्रस्थक का एक कुड़व आदि। ये धान्य और तरल पदार्थों के मापने के काम में आते है।
विवेचन- गाथा ८७ मे द्रव्य प्रमाप के दो भेद किये गये हैं (१) प्रदेश तथा (२) विभाग। प्रदेश की चर्चा पूर्व गाथा में की गई है, अब इस गाथा में विभाग नामक प्रमाप की चर्चा की जा रही है।
वह विभाग निष्पन्न द्रव्य प्रमाप निम्न पांच प्रकार का है१. मान-- धान्य या तरल पदार्थ मापने के पात्र विशेष। २. उन्मान- ठोस धातुएँ आदि तोलने के बटखरे। ३. अवमान- भूमि आदि मापने के साधन दण्ड आदि।
४. गणिम- एक, दो, तीन, चार आदि की गणना करके दी जाने वाली वस्तुएँ।
५. प्रतिमान- जिससे सोने, चाँदी आदि बहुमूल्य वस्तुओं का वजन किया जाय।
(१) मान प्रमाप- मान प्रमाप भी दो प्रकार का है, धान्य सम्बन्धी तथा तरलपदार्थ सम्बन्धी।
(अ) धान्य सम्बन्धी प्रमाप-अशति अर्थात् एक मुद्धि, दो अशति की एक प्रसूति (पसमिया अञ्जलि), दो प्रति की एक सेतिका। चार सेतिका का एक कुड़व। चार कुड़व का एक प्रस्थ। चार प्रस्थ का एक-आड़क। चार आढ़क का एक द्रोण। साठ आढ़क का एक जघन्य कुम्भ। अस्सी आढ़त का एक मध्यम कुम्भ तथा सौ आढ़क का एक उत्कृष्ट कुम्म। आठ सौ आदक का एक बाह होता है।
धान्य के प्रमाप की यह पद्धति प्राचीन काल के मगध देश में प्रचलित थी!
(अ) रस अर्थात् तरल पदार्थ सम्बन्धी प्रपाप-रस सम्बन्धी प्रमाप धान्य सम्बन्धी प्रमाप से चतुर्भाग अधिक और अभ्यन्तर शिखा युक्त होता है। धान्य को मापने हेतु उसे पात्र में भर कर उसकी बाह्य शिखा बनायी जा सकती है, परन्तु