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सत्पदग्ररूपणाद्वार
चौदह जीव समास (गुणस्थान) में चौदह मार्गणाएं
१. गति-देव, नारकी में प्रथम चार, तिर्यश्च में पाँच तथा मनुष्य में चौदह गुणस्थान हैं एवं अपर्याप्त (लब्धि) जीवों में मात्र पिथ्यादृष्टि नामक एक गुणस्थान होता है।
२. इन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय जीवों तक मात्र एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान तथा पंचेन्द्रिय में चौदह गुणस्थान पाये जाते हैं।
३. काया-पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक मिथ्यात्व गुणस्थान तथा उसकाय में चौदह गुणस्थान पाये जाते हैं।
४. योग- तीन योगों में तेरह गुणस्थान होते हैं और इसके बाद अयोगी केवली गुणस्थान मे योग का अभाव है।
५. वेद- तीनों वेदों में मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिबादर तक नौ गुणस्थान होते हैं तथा अदक में अभियान से संकर अयोगविली तक छ गुणस्थान होते हैं।
६. कपाय- प्रथम से दसवे गुणस्थान तक कषाय रहते हैं। ग्यारह से चौदहवें गुणस्थानवी जीव अकषायी होते हैं।
७. ज्ञान-अज्ञान-मत्ति एवं श्रुत अज्ञान तथा विभंगशान में मिथ्यादष्टि व सास्वादनसम्यग्दृष्टि ये दो गुणस्थान होते हैं। मति, श्रुत तथा अवधिज्ञान में असंयत सम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय तक (नौ) गुणस्थान है। मनः पर्यवज्ञान में प्रमत्त संयत से क्षीणकषाय तक (सात) गुणस्थान होते हैं। केवलज्ञान में सयोगी-केवली एवं अयोगी केवली ये दो गुणस्थान होते हैं।
4. संथम-प्रमत्त संयत से अयोग केवलो गुणस्थान तक संयत जीव होते हैं। सामायिक संयत और छेदोपस्थापनीय संयत जीव प्रमत्त संयत से लेकर अनिवृत्तिनादरगुणस्थान तक होते हैं। परिहारविशुद्धि चरित्र वाले संयत जीव प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गणस्थान में होते हैं। सूक्ष्मसंपराय चरित्र वाले संयत जीव एकमात्र सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान में होते हैं। यथाख्यात चरित्र वाले संयत जीव उपशान्त कषाय गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक होते हैं। संयतासंयत जीव मात्र देशविरत गुणस्थान में होते हैं। असंयत जीव प्रारम्भ के चार गुणस्थान में होते हैं।
९. दर्शन-चक्षुदर्शन और अच्चक्षुदर्शन में मिथ्यादृष्टि से लेकर क्षीणकषाय तक बारह गुणस्थान होते हैं। अवधिदर्शन में असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय तक नौ गुणस्थान होते हैं। केवल दर्शन में सयोगी और अयोगी ये दो गुणस्थान हैं।