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जीवसमास
विवेचन- कितने ही चतु: स्थानीय तथा त्रिस्थानीय सर्वघाती स्पर्धक तथा कितने ही स्थानीय सर्वघाती स्पर्धको के विशुद्ध अध्यवसाय के बल से सम्पूर्ण रूप से उच्छेद होने पर और देशघाती कर्म प्रकृतियों के कितने ही स्पर्धकों के अनन्त भाग का प्रत्येक समय में त्याग करते हुए देशघाती स्पर्धकों के रस का भी जब अनन्तवां भाग बाकी रहे तब जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है अन्य दूसरी प्रकार से नहीं। अभी तक सम्यग्दर्शन प्राप्ति का कारण बताया, अब तोन प्रकार के सम्यग्दर्शन को बताते हैं।
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सम्यग्दर्शन के तीन प्रकार
खणमुष्णं सेसयमुवसंतं भण्णए खओवसमो I उदयविधrय उवसमो खओ व दंसणतिगाधाओ ।।७८।।
गाथार्थ - दर्शनमोहनीय कर्म की उदय में आयी हुई कर्म प्रकृतियों को क्षय कर देना और उदय में आने वाली कर्म प्रकृतियों को उपशमित कर देना क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन है। दर्शनमोहनीय के उदय को कुछ समय तक रोक देना आपशमिक सम्यग्दर्शन है तथा दर्शनमोहनीय त्रिक का पूर्णतः क्षय कर देना क्षायिक सम्यग्दर्शन है।
विवेचन - उदय में आये हुए दर्शन मोहनीय का क्षय करना तथा जो सत्ता में हैं उन्हें अपना फल देने से रोके रखना क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन है। दर्शन मोहनीय के उदय को कुछ समय के लिए रोकना औपशमिक सम्यग्दर्शन हैं। उदय में आये हुए तथा सत्ता में रहे हुए दर्शनमोहत्रिक ( मिथ्यात्वमोह, मिश्रमोह तथा सम्यक्त्वमोह) को क्षय कर देना क्षायिक सम्यग्दर्शन है।
प्रश्न- क्षायोपशमिक तथा औपशमिक सम्यग्दर्शन में क्या अन्तर है?
उत्तर - क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन में सम्यक्त्वमोहनीय का विपाकोदय तथा मिथ्यात्व मोहनीय का प्रदेशोदय होता है। औपशमिक सम्यग्दर्शन में इन दोनों में से किसी का भी उदय नहीं होता है।
प्रश्न – विपाकोदय और प्रदेशोदय में क्या अन्तर है?
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उत्तर - विपाकोदय में जीव कर्म के फल का अनुभव करता है- जैसे बिना बेहोश किये ऑपरेशन करने पर चीर-फाड़ की वेदना का अनुभव होता है।
जबकि प्रदेशोदय में जीव कर्मफल का उदय होने पर उसका सुखदुःखात्मक अनुभव नहीं करता है । यथा- मूर्च्छावस्था में किया गया ऑपरेशन। यहाँ चीर-फाड़ होने के कारण पीड़ा की घटना घटित होती है परन्तु बेहोशी के कारण व्यक्ति को उसका अनुभव नहीं होता। जो कर्म बिना सुख-दुःख का संवेदन कराये