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जीवसमास
भी क्यों तोड़े ? हम फलो का गुच्छा तोड़कर भी अपना काम चला सकते हैं तब पाँचवें ने कहा नहीं नहीं गुच्छे से भी हमें क्या मतलब है? हमें मात्र पके हुए जामुन चाहिये अतः पके हुए जामुन तोड़कर हम अपना पेट भर लेंगे। तब ही उत्तम भावों में जीने वाला छठा व्यक्ति बोल उठा- हमें केवल पके हुए फल चाहिये । पके हुए जामुन के फल जमीन पर ही इतने गिरे हुए हैं कि उनको उठाकर खाने से भी हम सभी की क्षुधा शान्त हो जायेगी।
दूसरा दृष्टान्त – छः पुरुष धन लूटने के इरादे से जा रहे थे रास्ते में किसी गाँव को देखकर एक टे कड़ा इस गाँव को तहस-नहस कर दो। पशु-पक्षी मनुष्य जो मिले सभी को मार कर धन ले लो, दूसरे कहा— पशु-पक्षी या अबोध बालकों को क्यों मारना - केवल स्त्री-पुरुषों को ही मारना। तीसरे ने कहा- स्त्रियों को नहीं मारना, मात्र पुरुषों को ही मारना। चौथे ने कहा- सब पुरुषों को भी नहीं मारना चाहिए मात्र शस्त्रधारी को मारना । पाँचवें ने कहा— शस्त्रधारी में भी मात्र प्रतिकार करने वाले को मारना । छठे ने कहा- हमें धन से प्रयोजन है अतः किसी को भी न मारते हुए किसी भी युक्ति से धन हरण कर लो। एक तो किसी का धन लेना फिर उसे मार भी देना यह उचित कार्य नहीं हैं। इन दो दृष्टान्तों से लेश्याओं के उत्तरोत्तर विकास की मनोभूमियों को स्पष्ट जाना जा सकता है। चित्तवृत्ति या मनोदशा की अशुभतम से लेकर शुभतम तक की अवस्थाओं को ही क्रमशः कृष्ण, नीलादि नाम दिये गये हैं।
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कृष्णलेश्यावाला व्यक्ति अतिरौद्र परिणामी, महाक्रोधी, महाईर्ष्यावाला, अत्यन्त पापी, निर्दयी और बात-बात में वैर विरोध खड़ा करने वाला तथा धर्मभावना से रहित होता है। ऐसा व्यक्ति मरकर नरक में जाता है।
नीललेश्यावाला व्यक्ति - आलसी, जड़बुद्धि, स्त्री लम्पट, परवञ्चक, डरपोक, अभिमानी, हठप्रिय होता है। यह मरकर प्रायः एकेन्द्रिय जीवों में जन्म लेता है। कापोतलेश्यावाला व्यक्ति शोक सन्ताप में निमग्न, महारोषी, स्वप्रशंसक, परनिन्दक एवं लड़ने में मजबूत होता है तथा मरकर प्राय: निकृष्ट तिर्यगति में जाता है।
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तेजोलेश्यावाला व्यक्ति विद्वान्, दयालु, कार्याकार्य का विचारक, लाभालाभ का ज्ञाता तथा जीव मात्र के प्रति प्रेम वाला होता है, मरकर मनुष्यगति में जाता है।
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पद्मलेश्यावाला व्यक्ति - क्षमाशील, सरलस्वभावी, दानी, अहिंसक, व्रतों का पालक, पवित्राशयी और धर्मपरायण होता है तथा मरकर देवगति में जाता है।