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जीवसमास संस्थान
समचउरंसा नग्गोह साई खुज्जा य वामणा हुंडा । पंचिंदियतिरपनरा सुरा समा सेसया हुंडा ।।५।।
गाथार्थ- १. समचतुरस्र, २. न्यग्रोध, ३. सादि, ४. कुब्ज, ५. वामन तथा ६. हण्डक-ये छ: संस्थान हैं। ये छहों संस्थान पञ्चेन्द्रिय-तिर्यञ्चों तथा मनुष्यों में पाये जाते हैं। देवताओं में मात्र समचतुरस्त्र संस्थान होता है। शेष विकलेन्द्रिय जीवों में हुण्डक संस्थान होता है।
विवेचन- शरीर की बाह्य संरचना अर्थात् आकार-प्रकार को संस्थान कहते हैं। इसके निम्न छ: प्रकार हैं
१. समचतुरस्त्र संस्थान-सम का अर्थ है समान। चतुः का अर्थ है चार। अस्त्र का अर्थ हैं कोण। पालथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों अर्थात् (१) आसन और कपाल का अन्तर, (२) दोनों जानुओं का अन्तर, (३) बाम स्कन्ध से दक्षिण जानु का अन्तर तथा (४) दक्षिण स्कन्ध से वाम जानु का अन्तर समान हो उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं सामद्रिक शास्त्रानुसार जिस शरीर के सम्पूर्ण अवयव प्रमाणोपेत हों, उसे 'समचतुरस्न संस्थान'
कहते हैं।
२. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान-न्यग्रोध अर्थात् वटवृक्ष। परिमण्डल अर्थात् ऊपर का आकार। जैसे वट वृक्ष ऊपर के भाग में फैला रहता है
और नीचे से संकुचित रहता है उसी प्रकार जिस संस्थान में नाभि के ऊपर का भाग विस्तृत अर्थात् शरीर शास्त्र में बताये हुए प्रमाण वाला हो और नीचे का भाग अपेक्षाकृत क्षीण अवयव वाला हो, उसे 'न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान' कहते हैं।
३. सादि संस्थान- यहाँ सादि शब्द का अर्थ नाभि से नीचे का भाग है। जिस संस्थान में नाभि से नीचे का भाग पूर्ण और ऊपर का भाग क्षीण (होन) हो उसे 'सादि संस्थान' कहते हैं। सादि सेमल (शाल्मली) वृक्ष को कहते है। शाल्मली वृक्ष का धड़ जैसा पुष्ट होता है वैसा ऊपर का भाग नहीं होता। उसी प्रकार सादि संस्थानवाले का शरीर भी नीचे से पुष्ट, पूर्ण तथा ऊपर से क्षीण होता है।
४. कुब्जक संस्थान-जिस शरीर में हाथ, पैर, सिर, गर्दन, आदि अवयव ठीक हों पर छाती, पेंट, पीठ आदि टेढ़े हों उसे 'कुब्जक संस्थान' कहते हैं।