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मङ्गलाचरण
(क) कसायपाहुड (३/३-२२/७/३) में यह प्रश्न उपस्थित किया गया है कि
अनुयोगद्वार किसे कहते हैं? इसके उत्तर में बताया गया हैं कि कहे जाने वाले अर्थ को जानने के उपायभूत अधिकार को अनुयोगद्वार कहते हैं। अनुयोग के चार प्रकार हैं- १. प्रथमानुयोग, २. करणानुयोग, ३.
चरणानुयोग तथा ४. द्रव्यानुयोग। (ख) स्याहादमञ्जरी (श्लोक-२८/ पृष्ठ-३०९/पंक्ति-२२) में उपक्रम आदि चार
अनुयोग बताते हुए कहा गया है- प्रवचन महानगर के अनुयोग रूप
चार द्वार हैं- १. उपक्रम, २. निक्षेप, ३. अनुगम और ४, नय। (ग) तत्त्वार्थसूत्र (१/७) में निर्देश, स्वामित्व आदि छः प्रकार के अनुयोग बताये
गये हैं। (घ) पखण्डागम की धवलाटीका में (१११, १, १/१८/३४) में बताया गया
है कि- किं, कस्स, केण, कत्थ, केवचिर तथा कदिविध - इन छ: अनुयोगद्वारों से सम्पूर्ण पदार्थो का ज्ञान करना चाहिए। .
इन्हीं छ: अनुयोगद्वारों को आगे गाथा चार में स्पष्ट किया गया है। छः अनुयोगद्वार
किं कस्स केण कत्य व केवधरं कहविहो उ भावोत्ति।
छहिं अणुओगवारेहिं सव्वे भावाऽणुगंतवा।।४।।
गाथार्थ- क्या, किसका, किससे, कहाँ, कितने समय तक और कितने प्रकार के भाव वाला है, इन छ: अनुयोगद्वारों से जीव आदि तत्त्वों की सभी अवस्थाओं का विवेचन करना चाहिए। जैसे
प्रश्न-जीव क्या है? अथवा जीव का लक्षण क्या है? उत्तर- जीव का लक्षण उपयोग है। प्रश्न- जीव किसका स्वामी है? उसर- जीव स्वयं के ज्ञानादि गुणों का स्वामी है। प्रश्न- जीव किसके द्वारा बंधा हुआ है? उत्तर-संसारी जीव कर्मों से बंधा हुआ है। प्रश्न-जीव कहाँ-कहाँ है? उत्तर-सशरीरी संसारी जीव चौदह राजूलोक में है और सिद्धजीव लोकान
में सिद्धशिला के ऊपर स्थित है। प्रश्न-जीव कब से है और कब तक रहेगा? उत्तर- जीव अनादि काल से है और अनन्तकाल तक रहेगा। प्रश्न-जीव के भाव कितने प्रकार के हैं?