________________
जीवसमास
विशेष - भरत तथा ऐरावत क्षेत्र में अवसर्पिणी के प्रथम तीन आरों से कुछ कम तथा उत्सर्पिणी के अन्तिम तीन आरों से कुछ कम समय- अकर्मभूमि के रूप में ही होता हैं। इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में सर्वप्रथम ऋषभदेव के समय से असि मसि - कृषि (कर्म) की व्यवस्था प्रारम्भ हुई थी, उससे पूर्व यह क्षेत्र अकर्मभूमि थी।
२०
३. अन्तरद्वीप -- ये द्वीप लवण समुद्र के अन्दर होने से अन्तरद्वीप कहलाते हैं। लवण समुद्र में चारों ओर हाथी दाँत तुल्य दो-दो दाढाए हैं। इस प्रकार चार तरफ दो-दो दादा होने से कुल आठ दाढाएँ होती है। एक-एक दादा में सात-सात द्वीप होने से छप्पन (८४७= ५६ ) अन्तरद्वीप होते हैं।
गर्भज - स्त्री और पुरुष के संयोग से उत्पन्न होने वाले जीव गर्भज कहे जाते हैं।
आर्य- आर्य क्षेत्र अर्थात् जहाँ तीर्थंकर आदि का जन्म होता है और उनके द्वारा धर्म-प्रवर्तन होता है- ऐसे क्षेत्रों को आर्यक्षेत्र कहते हैं ऐसे क्षेत्रों मे जन्म लेने वाले मनुष्य आर्य कहलाते हैं। ये आर्य भी नौ प्रकार के हैं- १. क्षेत्र - आर्य, २. जाति - आर्य, ३. कुल-आर्य, ४. कर्म आर्य, ५. शिल्प-आर्य, ६. भाषा - आर्य, ७. ज्ञान - आर्य, ८. दर्शन-आर्य और ९ चारित्र- आर्य आर्य अर्थात् सुसंस्कारित । प्रज्ञापनासूत्र (पृ. १०२) में निम्न २५ ई देशों के निवासी "क्षेत्रआर्य" कहे गये हैं
राजधानी
१.
२.
३.
४.
देश
मगध
अंग
बंग
कलिंग
काशी
कोशल
राजगृह
चम्पा
ताम्रलिप्ति
कंचनपुर
वाराणसी
साकेत अयोध्या
हस्तिनापुर
शौरीपुर
५.
६.
७. कुरु
८.
कुशार्त
९. पंचाल
१०. जांगल
११. सौराष्ट्र
१२. विदेह
२५. लाठ
२५ केकयार्द्ध श्वेताम्बिका
काम्पिल्यपुर
अहिच्छत्रा
द्वारिका
मिथिला
कोटिवर्ष
देश
१३. वत्स
१४. शांडिल्य
१५. मलय
१६. मत्स्य
१७. वरण
१८. दशार्ण
१९. चेट्टीदेश
२०. सिंधु - सौवीर
२१. शूरसेन
२२. भंग
२३. परिवर्त
२४. कुणाल
राजधानी
कौशाम्बी
नंदीपुर
भद्दिलपुर
वैराट
आच्छा
मृत्तिकावती
शुलिपति
वीतभयपत्तन
मथुरा
पावापुरी
मासापुरी
श्रावस्ती