________________
सत्पदनरूपणाद्वार
३७
४, शीत-जिस उत्पत्ति स्थान में शीत स्पर्श हो। ५. उष्ण- जिस उत्पत्ति स्थान में स्पर्श उष्ण हो।
६. मिन (शीतोष्ण) जिसमें कुछ भाग शीत तथा कुछ भाग उष्ण स्पर्श वाला हो।
७. संवृत्त- जो स्थान ढका हुआ हो। ८. वित्त- जो स्थान खुला हो।
९. मिन्न (संवत-विवत)- जो स्थान कुछ ढका तथा कुछ खुला हो। जीवों की योनि (जन्म) स्थान
एगिदियनेरझ्या संवुडजोणी य हुंति देवा य ।
विगलिंदियाण वियडा संबुडवियडा य गल्भमि ।। ४५।। गाचार्थ- एकेन्द्रिय जीव, नारक और देवता संवृत योनि से जन्म लेते हैं। विकलेन्द्रिय जीव विवृत योनि से उत्पन्न होते हैं तथा गर्भज जीव अर्थात् मनुष्य एवं तिथंच संवृतविवृत योनि से जन्म ग्रहण करते हैं।
प्रश्न- नारक तथा देव के जीव संवृत्त योनि वाले कैसे होते हैं?
उत्तर- नारकी जीवों का जन्म कुम्भियों में होता है। ये कुम्भियाँ ढकी हुई होती है। इसी प्रकार देवता देवशय्या में देवदुष्य वस्त्र से ढके हए जन्म लेने के कारण संवृतयोनि वाले माने जाते हैं। एकेन्द्रिय जीवों का जन्म भी संवृत रूप से ही होता है। अतः ये सभी संवृत योनि वाले माने जाते हैं।
अच्चिता खलु जोणी नेरायाणं तहेव देवाणं । मीसा य गावसही सिविहा जोणी उ सेसाणं।।४६।।
गाथार्थ- नारक तथा देव की योनि अचित्त होती है। गर्भज तिर्यच तथा मनुष्य की योनि मिश्र होती है। शेष सभी को सचित, अचित अथवा मिश्र योनि होती है।
विशेष- शेष सभी अर्थात् एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव की योनि सचित्त, अचित्त अथवा मिश्र इन तीनों में से किसी भी एक प्रकार की हो सकती है।
सीओसिणजोणीया सम्बे देवा व गमवक्ता ।।
दसिणा य तेउकाए दुह नरए विवि सेसाणं ।।४।। गाथार्थ- सभी प्रकार के देव तथा गर्भज (मनुष्य एवं तिर्यश्च) मिश्र (शीतोष्ण) योनि में उत्पन्न होते हैं। तेजस्काय के जीव उष्ण योनि वाले होते हैं।