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गील सास इन कुलों की संख्या १९७६ लाख करोड़ है।
जीवसमास में गाथा ४० से ४४ तक जीवों के इन कुलों अर्थात् अनुवांशिकताओं का वर्णन किया गया है।
बिच्छओं की योनि एक है किन्तु उनमें जो रंग आदि की भिन्नता के कारण जो अनुवांशिक भेद हैं वे कुल कहलायेंगे।
कहीं ऐसा भी कहा गया है कि सभी प्रकार के भ्रमरों की योनि एक है परन्तु काष्ठ, गोबर, पुष्पादि अलग-अलग स्थान में उत्पन्न होने के कारण एवं उनके रंग आदि की भित्रता के कारण उनके कुल अनेक माने जायेंगे। यही कारण है कि योनि की अपेक्षा कुल की संख्या अधिक है। आकार की अपेक्षा तीन प्रकार की योनियों
आकार की अपेक्षा से योनि तीन प्रकार की कही गई हैं- १. कूत्रित (कछुए के समान उन्नत) योनि। २. शंखावर्त (शज के समान आवर्त वाली) योनि और ३. बंशीपत्रिका (बाँस के पत्ते के समान आकार वाली) योनि।
-- स्थानाङ्ग, (तृतीय स्थान, प्रथम उद्देशक, सूत्र १०३) १. कर्मोन्नत योनि-उत्तम पुरुषों की माताओं के होती है। इसमें तीन प्रकार के उत्तम पुरुष गर्भ में आते है- तीर्थकर, चक्रवर्ती और बलदेव तथा वासुदेव।
२. शंखावर्त योनि-चक्रवर्ती के खी रत्न अर्थात मख्य पटरानो की होती है। शंखावर्त योनि में बहत से जीव और पुदगल उत्पन्न और विनष्ट होते हैं, किन्तु निष्पन्न नहीं होते अर्थात् यह सन्तान को जन्म नहीं देती हैं।
३. बंशीपत्रिका योनि- सामान्य पुरुषों के माताओं की होती है। योनि के नौ प्रकार (उत्पत्ति स्थान की अपेक्षा से)
___ तत्त्वार्थसूत्र, द्वितीय अध्याय, सूत्र ३३ में नौ प्रकार की योनियाँ बताई गई हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में अगली गाथाओं में नौ योनियों की चर्चा है। नौ प्रकार की योनियों की चर्चा उत्पत्ति स्थान के स्वरूप की अपेक्षा से की गई हैं
१. सचित्त- जो जीव से अधिष्ठित हो, चेतना युक्त हो। २. अचित-जो जीव से अधिष्ठित न हो।
३. मिन्ना (सचिसाचित्त-जो आंशिक रूप से जीव से अधिष्ठित हो तथा आंशिक रूप से जीव से अधिष्ठित न हो।