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जीवसमास देव- ऊर्ध्वलोक में रहने वाले देव आदि।
मनुष्य, तिर्थच, नारक तथा देव की चर्चा हम पूर्व गाथाओं में कर चुके हैं। नोट- द्वीन्द्रिय- जिनके दो इन्द्रियाँ हैं- शरीर तथा मुख।
प्रौन्द्रिय- जिनके तीन इन्द्रियाँ है- शरीर, पुख तथा नासिका। चतुरिन्द्रिय- जिनके चार इन्द्रियाँ है- शरीर, मुख, नासिका तथा अन्य।
पंचेन्द्रिय-- जिनके पाँच इन्द्रियाँ - शरीर, मुख. नासिका, आँख तथा कान। कुलों की संख्या
बारस सर प तिनि य सत्त य कुलकोडि सयसहस्साइं। नेपा पुखविदगागणिवाऊण व परिसंखा।।४।। कुलकोडिसषसहस्सा सतह य नव व अवीस छ । बोइंदियतेइंदियघाउरिदियहरियकायाणं
॥४१।। अद्वत्तेरस दर दर दस कुमकाउसहस्साई । जलयरपक्तिचउप्पयउरभुयसप्माण नव ति ।। ४२।। छब्बीसा पणबीसा सुरनेरहयाण सहसहस्साई । पारस य सयसहममा कुलकोडीणं मणुस्साणं ।।४३।। एगा कोडाकोडी सत्ताउई मवे सबसहस्सा । पन्नासं घ सहस्सा कुलकोडीओ मुणेपव्या ।। ४४।।
गाथार्थ- पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय और वायुकाय के फुलों की संख्या अनुक्रम से बारहलाख करोड़, सातलाख करोड़, तीनलाख करोड़ और सातलाख करोड़ जानना चाहिये।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय. चतुरिन्द्रिय तथा वनस्पतिकाय के कुलों की संख्या क्रमश: सातलाख करोड़, आठलाख करोड़, नौलाख करोड़ तथा अट्ठासीलाख करोड़ जानना चाहिये।
जलचर, खेचर, चतुष्पद, उरपरिसर्प तथा भुजपरिसर्प के कलों की संख्या क्रमश: साढ़े बारह लाख करोड़, बारह लाख करोड़, दस लाख करोड़, दस लाख करोड़ तथा नौ लाख करोड़ जानना चाहिये।
देव, नारक तथा मनुष्य के कुलों की संख्या क्रमश: छब्बीस लाख करोड़, पच्चीस लाख करोड़ तथा बारह लाख करोड़ जाननी चाहिये।
इस प्रकार समस्त कुलों की संख्या एक करोड़ सत्तानवें लाख पचास हजार (१९७,५००००) करोड़ जाननी चाहिये।