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सत्पदप्ररूपणाद्वार गूडसिरसंधिपव्वं समभंगमहीरयं च छिन्नरुहं ।
साहारणं सरीरं तबिवरीयं च पत्तेयं ।।३७।। गाथार्थ-जिस वनस्पति की नसें, सन्धियां और पर्व (गांठे) देखने में न आती हों। तोड़ने पर जिनके समान टुकड़े होते हों, जिसमें तंतु न हों और जो काटने पर भी पुन: अंकुरित हो जाय वह साधारण वनस्पतिकाय कहलाती है तथा इसके विपरीत लक्षण वाली प्रत्येक वनस्पति होती है।
इस प्रकार पाँच स्थावर का निरूपण किया, अब त्रसकाय का निरूपण करते हैंजस के भेद
दुविहा तसा व दुत्ता वियला सयलिंदिया मुणेषज्या । शितिषडरिदिय वियला सेसा सयलिदिया नेया ।।३८।।
गाथार्थ- बस दो प्रकार के कहे गये हैं— विकलेन्द्रिय तथा सकलेन्द्रिय। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीव विकलेन्द्रिय हैं। शेष सभी पंचेन्द्रिय जीव दरलेन्द्रिय कहे जो
विवेचन- त्रास, कष्ट, पौड़ा मिलने पर जो स्थानान्तरित हो सकें वे उस हैं। ये दो प्रकार के हैं- विकलेन्द्रिय अर्थात द्वीन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक एवं सकलेन्द्रिय अर्थात् पञ्चेन्द्रिय।
संखा गोम्मी भमरााया उ विगलिंदिया मुणेयव्वा । पंचिंदिया य जलालसाहयकसुरनारयनरारय ।।३।।
गाथार्थ- शंख, कनखजूरा, भ्रमर आदि को विकलेन्द्रिय जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रियों में जलचर, थलचर, खेचर, देव, नारक तथा मनुष्य आते हैं।
विवेचन- द्वीन्द्रिय में शंख, कौड़ी, सीप, अलसिया आदि जीव आते हैं। श्रीन्द्रिय में कनखजूरा, खटमल, चींटी, जू आदि जीव आते हैं। चतुरिन्द्रिय में भ्रमर, मक्खी, मच्छर आदि जीव आते हैं। तिर्यंच पंचेन्द्रिय के तीन प्रकार हैं१. जलचर, २. थलचर तथा ३, खेचर। १. जलचर जैसे मछली आदि हैं। २. थलचर तीन प्रकार के हैं- (क) चतुष्पद । में गाय, घोड़ा आदि। (ख) उरपरिसर्प- सांप, अजगर आदि। (ग) भजपरिसर्प-- नेवला, गिरगिट आदि। ३. खेचर- आकाश में उड़ने वाले कबूतर, कौआ आदि।
मनुष्य- कर्म तथा अकर्म भूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य। नारक- रत्नप्रभा आदि नरक में उत्पन्न होने वाले जीव नारकी हैं।