________________
मनानारूपानाहा
इनके अतिरिक्त महाविदेह क्षेत्र में विजयों के मध्य खण्डवर्ती क्षेत्र आर्य देश जानना। (क्षेत्र-आर्य के अतिरिक्त अन्य आर्यों की जानकारी हेतु देखेंप्रज्ञापनासूत्र- प्रश्न १०३ से प्रश्न १३८ तक)
अनार्य या म्लेच्छ- धर्म के स्वरूप को नहीं जानने वाले भक्ष्याभक्ष्य एवं कृत्याकृत्य को नहीं समझने वाले अनार्य या म्लेच्छ कहे जाते हैं। ये म्लेच्छ शक, यवन, शबर, बर्बर, किरात आदि देश में जानना। ये कठोर निर्दयी, धर्मरहित रौद्र परिणामी होते है। (विस्तार हेतु देखें- प्रज्ञापनासूत्र -प्रश्न ९८) आर्य-अनार्य का यह भेदमात्र कर्मभूमि में है भोगभूमि में नहीं। अकर्मभूमि के समान ही ५६ द्वीप में रहने वाले मनुष्य भी १० प्रकार के कल्पवृक्षों से ही अपने इष्ट पदार्थों को प्राप्त करते हैं। इन द्वीपों में रहने वाले मनुष्य बज्रऋषभनाराच सङ्घनन वाले, समचतुस संस्थान वाले एवं देवतुल्य लावण्य वाले होते हैं। ये मनुष्य स्वभाव से भद्र, विनयी, प्रशान्त, अल्पकषायी, अल्प इच्छावाले, अल्प ममत्ववाले, वेदनारहित, एक दिन के अन्तर से आहार करने वाले होते हैं तथा एक युगल को जन्म देकर ७९ दिन पालन करके देवलोक को प्राप्त करते हैं।
__ भोग भूमि में जन्म लेने वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च भी अवर स्वभाव वाले होते हैं। वे भी मरकर देवलोक में जाते हैं। इन द्वीपों में विकलेन्द्रियों का सर्वथा अभाव होता है। (विस्तृत विवेचन हेतु देखें- जीवाजीवाभिगमसूत्र)
अकर्मभूमियों व अन्तरद्वीपों का कोष्ठक स्थान देहमान | आयुष्य आहारदिन आहार परिमाण |पसली | अपत्य
पालन ५६ अन्तरद्वीप ०० धनुष बल्योपम का एक दिन के आंवले के ४ ०९दिन
असंख्यमाग अन्तराल से बराबर हिमवन्त, हिरण्यवंत ५ गाउ |१ पल्यापम |एक दिन के आंवले के ६४ ७९दिन
अन्तराल से बराबर हरिवर्ष, रम्यक् वर्ष| २ गाउ २ पल्योपम | दो दिन के बेर के १२८ ६४दिन
अन्तराल से बराबर देवकुरु, उत्तरकुरु . इ गाउ | ३ पल्योपम | तीन दिन के | तुअर के २५६ ४९दिन
अन्तगल से | दाने के बराबर
सम्भूसिम मनुष्य-प्रज्ञापनासूत्र– प्रश्नसंख्या-९५ में यह पूछा गया है कि- भगवन्। सम्मूछिम मनुष्य कैसे होते हैं? वे कहाँ उत्पन्न होते हैं? उत्तर में भगवान ने कहा हे गौतम! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर, पैंतालीस लाख योजन विस्तृत द्वीप-समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं छप्पन अन्तरद्रोपों