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सत्पदप्ररूपणा-द्वार
१. गति मार्गणा निरयगई तिरि मणुया देवगा चेव होइ सिद्धि गई ।
नेइया उण नेया सप्तविहा पुढविभेएण।।११।। ___गाथार्थ- १. नरकगति, २. तिर्यञ्चगति, ३. मनुष्यगति, ४. देवगति तथा ५. सिद्धगति- ऐसी पाँच गतियाँ होती हैं। पृथ्वियों (नरकों) के भेद से नरक गति भी सात प्रकार की है।
विवेचन- सामान्यतः गतियाँ चार ही मानी जाती हैं किन्तु यहाँ सिद्धगति को सम्मिलित करके पाँच गतियाँ बताई गई हैं। संसारी जीवों की अपेक्षा से तो गतियाँ चार ही हैं, पांचवीं गति के अधिकारी तो मात्र सिद्ध हैं। नरक गति
यम्मा वंसा सेला होइ तहा अंजणा य रिहाय । मघवत्ति माधवत्ति प पुढवीणं नामधेयाई।।१२।। रयणप्पभा य सक्करबालुयपंकप्पभा य धूमपहा।
होइ तम तम-तमाधिय पुढवीणं नामगोत्ताई ।।१३।। गाथार्थ-१. धम्मा, २. वंशा, ३. शैला, ४. अञ्जना, ५. रिटा, ६. मघवा और ७. माघवती नाम वाली (सात) पृथ्वियाँ (नरक) हैं।
इन पृध्वियों के १. रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रमा, ३. बालुकाप्रभा,४. पंकप्रमा, ५, धूमप्रभा, ६. तमःप्रभा, ७, तमस्तमप्रभा- ये सात गोत्र (विशेषता) जानने चाहिए।
विवेचन- रत्नों के प्रकाश को प्रभा कहते हैं। जिस नरक में प्रकाश रत्न के प्रकाश के समान हो उसे रत्नप्रभा नाम दिया गया है। जिसमें शर्करा कणों के समान कान्ति है, उसे शर्कराप्रभा नाम दिया गया है। इसी तरह क्रमश: सभी नरकों के विषय में जानना चाहिए। तिर्यझगति
तिरियगईया पंचिंदिया य पज्जसया तिरिक्खीओ। तिरिया य अपज्जत्ता मनुया पजस इयरे य ।।१४।।