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जीवसमास निक्षेप
निक्खेवनिरुत्तीहि छहि अट्ठहिं याणुओगदारेहि।
गड्याइमग्गणाहि य जीवसमासाऽणुगतव्या ।।२।। गाथार्थ-इस जीवसमास को निक्षेपों, नियुक्तियों, छ: या आठ अनुयोगद्वारों तथा गति आदि चौदह मार्गणाओं के द्वारा समझना चाहिए।
विवेचन-अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग ४, पृष्ठ २०२७ में निक्षेप का अर्थ बताया है- "निक्षेपणं निक्षेप:'। नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव आदि के द्वारा आगमिक शब्दों के अर्थ का निरूपण या व्याख्या करना निक्षेप है। सामान्यतया नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव- ये निक्षेपों के चार प्रकार बताये गये हैं। यद्यपि आगमों में इनके अन्य भेदों की चर्चा भी उपलब्ध होती है।
नियुक्ति- शब्द के अर्थ की व्युत्पत्तिपरक व्याख्याएँ नियुक्ति कही जाती हैं, यथा— जो जीता है वह जीव है।
अनुयोगदार- शब्द की व्याख्या जिन-जिन अपेक्षाओं से की जा सकती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। अग्रिम गाथा में इन पर विस्तार से विचार किया गया है।
मार्गणा-- गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाएँ हैं। जिनके आधार पर जीव की विभिन्न स्थितियों का विचार किया जाता है।
प्रस्तुत कृति के प्रथम विभाग की गाथा तीन मे निक्षेपों की, गाथा चार में छ; अनुयोगद्वारों की तथा गाथा पाँच में सत्पदप्ररूपणा आदि आठ अनुयोगद्वारों की चर्चा है, पुन: गाथा ग्यारह से छियासी तक चौदह मार्गणाओं की चर्चा है।
नामं ठवणा दव्वे भावे य चडबिहो उ निक्लेवो।
कत्था य पुण बहुविहरे तयासयं पप्प काययो।।३।। गाथार्थ- नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव- ये निक्षेप के चार प्रकार हैं। तथापि वक्ता के आशय एवं शब्द को प्रयोग शैली के आधार पर उसके अनेक भेद भी कहे जाते हैं।
विवेचन-'सामान्यतया निक्षेप के चार प्रकार बताये गये हैं, किन्तु वक्ता के आशय एवं शब्द की प्रयोग शैली आदि की अपेक्षा से अनेक प्रकार के निक्षेप भी घटित हो सकते हैं। आगमिक व्याख्याओं में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव, तद्भव, भोग, संयम, आधार, ओध, यशकीर्ति आदि दस निक्षेपों का भी उल्लेख मिलता है। यदि व्यक्ति सभी निक्षेपों को न जान सके तो कम से कम उसे चार निक्षेप तो जानना ही चाहिए।
इसी प्रकार अनुयोगद्वारों के सम्बन्ध में भी अनेक प्रकार के दृष्टिकोण उपलब्ध होते हैं