Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैनदर्शन में कारणवाद और पंचसमवाय १९ स्वयं का कारण कैसे हो सकता है? जैसे तीक्ष्ण नोंक वाली सुई अपने आपको नहीं बींधती इसी प्रकार कार्य कभी अपना कारण नहीं बनता है। अत: घट स्वयं अपना कारण कैसे हो सकता है? इस शंका का निराकरण करते हुए भाष्यकार कहते हैं- 'स कारणं बुद्धिहेउत्ति' जो घट कारण बनता है, वह कुम्भकार की बुद्धि में स्थित है, जिसके अनुसार वह मिट्टी को घट की आकृति देता है। सभी कार्य बुद्धि के संकल्प से ही होते हैं तभी बुद्धि में अध्यवसित कुम्भ द्रव्यरूप कुम्भ का अवलम्बन होता है।
पुनः प्रश्न किया जाता है कि द्रव्य कुम्भ के प्रकरण में बुद्धि में स्थित कुम्भ का कथन अनुचित है। इस प्रश्न के उत्तर में जैन दार्शनिक हेमचन्द्र कहते हैं'भाविनि भूतवदुपचारन्यायेन तयोरेकत्वाध्यावसानाददोषः' अर्थात् भूत और भविष्य के आधार पर उपचार से ऐसा कह दिया जाता है। जैसे घट बनाते समय स्थास-कोश की स्थिति हो तब भी कुम्हार को 'क्या बना रहे हो' पूछने पर वह 'घट' कहता है। भविष्यकाल में होने वाले घट को उपचार से वर्तमान में वह कह देता है। इसी प्रकार बुद्धि में स्थित कुम्भ को कारण मानना अनुचित नहीं है।२६
सभी कारण सामग्री के संनिधान होने पर भी कर्ता की बुद्धि का अध्यवसाय उस कार्य में न हो तो वह कार्य नहीं होता है। जैसे कुलाल-चक्र-चीवर आदि उपस्थित होने पर भी कुलाल की बुद्धि में घट-निर्माण की पूर्व योजना न हो तो घट के स्थान पर शराव आदि अन्य का निर्माण होता है या कुछ भी नहीं होता। इसलिए घट के निर्माण में घट भी कर्म कारण है।२७
___(iii) करण- 'मृत्पिण्ड-दण्ड-सूत्रादिकं घटस्य करणम्, साधकतमत्वात् २८ जो कार्य की सिद्धि में साधकतम कारण हो, वह करण कहलाता है। यहाँ घट के निर्माण में मिट्टी का पिण्ड, दण्ड, सूत्र आदि साधकतम होने से करण रूप में कारण हैं।
(iv) सम्प्रदान- 'सम्यक् सत्कृत्य वा प्रयत्नेन दानं यस्मै तत् सम्प्रदानम् १९ अर्थात् सम्यक् रूप से अथवा सत्कारपूर्वक प्रयत्न से जिसको दिया जाय वह सम्प्रदान है। घट के ग्राहक या क्रेता सम्प्रदान कारण हैं। सम्यक् रूप से उसी को दिया जा सकता है, जिसको उसकी आवश्यकता या लेने की इच्छा हो। ग्राहक को उद्देश्य में रखकर ही घट का निर्माण होता है अन्यथा निर्माण न हो। अत: घट रूपी कार्य में ग्राहकादि उसके सम्प्रदान कारण हैं।
(v) अपादान- 'ध्रुवत्वाद् भूमिलक्षणमपादानम् जिस ध्रुव पदार्थ से पृथक्करण होता है, वह अपादान कारण है। घट निर्माण में मिट्टी को ध्रुव भूमि से
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