Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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५६६ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
नियतिवाद का उन्होंने खण्डन किया तथा उत्थान, कर्म, बल एवं वीर्य को महत्त्व प्रदान किया। केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् भी स्वयं अप्रमत्त भाव से धर्मोपदेश करते हुए पुरुषार्थ करते रहे तथा अभ्यागतों को भी पुरुषार्थ का ही उपदेश दिया। यहाँ तीर्थकर महावीर के जीवन की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत की गई हैं, इसी प्रकार अन्य २३ तीर्थकरों के संबंध में भी पुरुषार्थ के
महत्त्व को जान लेना चाहिए। २. गौतम आदि गणधर- भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम आदि
ग्यारह गणधरों ने भी तप-संयम रूप धर्म पुरुषार्थ का आलम्बन लेकर मोक्ष प्राप्त किया। ये सभी गणधर जन्मना ब्राह्मण थे, वेद-वेदांगों के ज्ञाता थे, किन्तु भगवान महावीर के सम्पर्क में आकर उन्होंने धर्म पुरुषार्थ को साधना
का आलम्बन बनाया और केवलज्ञान प्राप्त करने में सक्षम बने। ३. अन्तगड़ सूत्र में ९९ आत्माओं द्वारा पुरुषार्थ- अन्तगड़ सूत्र के आठ
अध्ययनों में ९९ महापुरुषों के चारित्र का वर्णन प्राप्त है, जिन्होंने जैन धर्म में मान्य कनकावली, एकावली, लघुसर्वतोभद्र, महासर्वतोभद्र आदि विशिष्ट तपों की आराधना करते हुए प्रबल पुरुषार्थ के साथ अष्टविध कर्मों का नाश कर सिद्धि प्राप्त की। इनमें अर्जुनमाली, गजसुकुमाल एवं अतिमुक्त कुमार का वर्णन विशिष्ट है। जो अर्जुनमाली प्रतिदिन ६ पुरुष एवं एक स्त्री की हत्या करता था, वह बेले-बेले (दो-दो उपवास) की तपस्या करके एवं नगर जनों के व्यंग्य बाणों, गालियों, पत्थरों आदि की बौछार को समभाव से सहन कर आत्म-पुरुषार्थ के साथ मुक्ति का वरण करने में समर्थ हुआ। गजसुकुमार मुनि के सिर पर सोमिल ब्राह्मण के द्वारा धधकते अंगारे रखे गए तथापि समभाव की उत्कृष्ट आराधना में तल्लीन गजसुकुमार मुनि ने उफ तक नहीं किया। साधना के पुरुषार्थ का यह भी एक उत्कृष्ट उदाहरण रहा। अतिमुक्त कुमार ने अल्पवय में दीक्षा धारण की एवं आत्मपुरुषार्थ का परिचय देकर सिद्धि प्राप्त की। इस अंतगडदसा सूत्र में कृष्ण वासुदेव की माताओं, पत्नियों और पुत्रों ने भी आत्म-पुरुषार्थ का परिचय देकर बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमिनाथ के सान्निध्य में श्रमण-दीक्षा
अंगीकार की। ४. शालिभद, धन्ना अणगार, स्कन्धक ऋषि, धर्मरुचि अणगार आदि
के उदाहरण- आगम वाङ्मय एवं उत्तरकालीन साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जो आत्म-पुरुषार्थ के द्योतक हैं। शालिभद्र नामक
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