Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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उपसंहार ६१५ की चर्चा है। गोशालक की सम्प्रदाय आजीवक सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है, किन्तु वर्तमान में यह अस्तित्व में नहीं है। नियतिवाद का मन्तव्य है कि जो जब, जैसा और जिससे होना होता है वह तब, वैसा और उससे ही होता है। नियति के स्वरूप को प्रतिपादित करने वाला एक श्लोक सूत्रकृतांग और प्रश्नव्याकरण की टीका, सन्मति तर्क, शास्त्रवार्ता समुच्चय और लोकतत्त्व निर्णय आदि दार्शनिक ग्रन्थों में उद्धृत है, जो इस प्रकार हैप्राप्तव्यो नियतिगलाश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः।।१५
अर्थात् जो पदार्थ नियति के बल के आश्रय से प्राप्तव्य होता है, वह शुभ या अशुभ पदार्थ मनुष्यों को अवश्य प्राप्त होता है। प्राणियों के द्वारा महान् प्रयत्न करने पर भी अभाव्य कभी नहीं होता और भावी का कभी नाश नहीं होता है।
नियतिवाद का कोई स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, किन्तु इस सिद्धान्त का प्रभाव भारतीय वाङ्मय के विभिन्न ग्रन्थों में दृग्गोचर होता है। आगम, त्रिपिटक, उपनिषद्, पुराण, संस्कृत महाकाव्य एवं नाटकों में भी नियति के प्रतिपादक उल्लेख उपलब्ध होते हैं। वेद में नियतिवाद का साक्षात् उल्लेख नहीं है, किन्तु पं. मधुसूदन ओझा ने नासदीय सूक्त के आधार पर जगदुत्पत्ति के दशवाद प्रस्तुत करते हुए अपरवाद के अन्तर्गत स्वभाववाद के चार रूपों में एक रूप नियतिवाद बताया है।
श्वेताश्वतरोपनिषद् में 'कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा, भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या। २६ पंक्ति में नियतिवाद का अस्तित्व ज्ञापित होता है। महोपनिषद् एवं भावोपनिषद् के उद्धरणों से ज्ञात होता है कि नियति एक नियामक तत्त्व है। हरिवंशपुराण, वामनपुराण, नारदीयपुराण में दैव अथवा भवितव्यता के रूप में नियति की चर्चा है। रामायण में 'नियतिः कारणं लोके नियतिः कर्मसाधनम् २७ वाक्य नियति की महत्ता को स्थापित करते हैं। महाभारत में वेदव्यास ने नियति के स्वरूप को अभिव्यक्त करते हुए कहा है
यथा यथास्य प्राप्तव्यं प्राप्नोत्येव तथा तथा।
भवितव्यं यथा यच्च भव्यत्वे तथा तथा।।१८ महाकवि कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तल में 'भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र', 'भवितव्यता खलु बलवती२° आदि वाक्य नियतिवाद के साक्षी हैं। हितोपदेश, पंचतन्त्र आदि में भी नियति का महत्त्व स्थापित है। कल्हण की
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