Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
६२८ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
'पुरुषवाद' के बीज ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में उपलब्ध हैं। इसमें ऐसे पुरुष की कल्पना की गई है जो सहस्र शिरों, सहस्र भुजाओं वाला, सहस्र नेत्रों वाला और सहस्र पैरों वाला है। वह सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त किये हुए है। पुरुष सूक्त का एक मंत्र प्रसिद्ध है
पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्।
,३४
उतामृतत्वस्येश्वरो यदन्येनाभवत् सह । ।
उपनिषद् वाङ्मय में भी पुरुषवाद की मान्यता का समर्थन प्राप्त होता है। ऐतरेयोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, मुण्डकोपनिषद्, तैत्तिरीयोपनिषद्, प्रश्नोपनिषद् आदि उपनिषदों में पुरुषवाद वर्णित है। कहीं ब्रह्मवाद के रूप में उसका वर्णन किया गया है। तैत्तिरीयोपनिषद् में कहा गया है - यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति। यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । तद्विजिज्ञास्व । तद् ब्रह्मेति । ।
,३५
उपनिषदों में ब्रह्म से जगत् की उत्पत्ति का विवेचन अधिक हुआ है। जो पुराणों में परिवर्धित हुआ है। हरिवंश पुराण में भगवान नारायण को ब्रह्म से उत्पन्न स्वीकार किया गया है। देवी भागवत पुराण में अद्वैत ब्रह्म का निरूपण करते हुए उसे नित्य और सनातन बताया है तथा यह भी कहा गया है कि जब वह विश्व की रचना में तत्पर होता है तब वह अनेक रूप हो जाता है। महाभारत में अविनाशी परमात्मा से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि और अग्नि से जल तथा जल से पृथ्वी की उत्पत्ति निर्दिष्ट है। भगवद् गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- 'बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्। ष रामायण और मनुस्मृति में भी सृष्टि रचना का इसी प्रकार निरूपण हुआ है। मनुस्मृति में स्वयंभू परमात्मा से पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश की उत्पत्ति प्रतिपादित है।
३६
जैनागम सूत्रकृतांग में देव, ब्रह्म, ईश्वर और स्वयंभू के द्वारा जगत् के निर्माण की चर्चा है। जैनाचार्यों ने पुरुषवाद, ब्रह्मवाद और ईश्वरवाद तीनों का निरूपण एवं निरसन किया है। पुरुषवाद का ही विकास ब्रह्मवाद एवं ईश्वरवाद में हुआ है।
द्वादशारनयचक्र में मल्लवादी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने तथा सन्मतितर्क टीका में अभयदेव सूरि ने पुरुषवाद का उपस्थापन एवं निरसन किया है।
पुरुषवाद के निरसन में मल्लवादी क्षमाश्रमण, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, अभयदेवसूरि के तर्कों का संक्षेप इस प्रकार है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org