Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 705
________________ ६४४ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण ६१. योगसूत्र- भारतीय विद्या प्रकाशन, जवाहर नगर, नई दिल्ली ६२. राजवार्तिक- भट्ट अकलंकदेव विरचित, दुलीचन्द बाकलीवाल, यूनिवर्सल एजेन्सीज, देरगाँव (आसाम), प्रथम संस्करण, २५ जून १९८७ ६३. लोकतत्त्वनिर्णय- हरिभद्रसूरि कृत, श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर ६४. लोकप्रकाश- उपाध्याय श्री विनयविजय विरचित श्री भैरूलाल कन्हैयालाल कोठारी रिलीजियस ट्रस्ट चन्दनबाला, बालकेश्वर, ६८. ६५. लोकविंशिका- हरिभद्रसूरि रचित, आगमोद्धारक ग्रन्थमाला का एक कार्यवाहक, शाह रमणलाल जयचंद कपडवंज, जिला- खेड़ा। ६६. विंशतिविंशिका- श्रीमद् हरिभद्र सूरि विरचित (प्रकाशक का उल्लेख नहीं) ६७. विशेषावश्यक भाष्य- जिनभद्रगणि, दिव्य दर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, वि.सं. २०३९ शास्त्रवार्ता समुच्चय (स्तबक २,३)- हरिभद्र सूरि रचित, यशोविजय कृत स्याद्वाद कल्पलता टीका सहित, दिव्य दर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, विक्रम संवत् २०३६ ६९. सन्मतितर्क टीका( तत्त्वबोधविधायनी)- अभयदेवसूरिकृत, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद। ७०. सन्मतिप्रकरण- सिद्धसेन, व्याख्या-सुखलाल संघवी, ज्ञानोदय ट्रस्ट, अहमदाबाद, १९६९ ७१. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगम सूत्र- उमास्वाति, सेठ मणीलाल रेवाशंकर जगजीवन जौहरी, व्यवस्थापक- श्री परमश्रुत प्रभावक जैन मण्डल, जौहरी बाजार, खाराकुवा, मुम्बई नं. २ ७२. समयसार- कुन्दकुन्दाचार्य श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम अगास, वाया-आणंद, पो. बोरिया (गुजरात), विक्रम संवत् २०३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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