Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 664
________________ जैनदर्शन की नयदृष्टि एवं पंच समवाय ६०३ ६७. कालनयेन निदाघदिवसानुसारिपच्यमान सहकारफलवत्समयायत्तसिद्धिः। -प्रवचनसार, परिशिष्ट ३० ६८. प्रवचनसार, परिशिष्ट, ३३ ६९. दैवनयेन पुरुषकारवादिदत्तमधुकुक्टीगर्भलब्धमाणिक्यदैववादिवदयत्पुरुषकारवादिदत्तमधुकुक्टीगर्भलब्धमाणिक्यदैववादिवदयर -प्रवचनसार, परिशिष्ट ३३ ७०. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग द्वितीय, पृष्ठ ६१९ ७१. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग द्वितीय, पृष्ठ ६१९ ७२. तिलोक काव्य कल्पतरू, पंचवादी-स्वरूप-विषयक-काव्य, पृष्ठ १०६-१०७ ७३. कारण संवाद पृष्ठ ४१ ७४. उपदेश प्रसाद, भाग ४ से ७५. जैन दर्शन पृष्ठ ४७४ नय प्रज्ञापन पृष्ठ १७३-२१९ के आधार पर नय प्रज्ञापन पृष्ठ १७४ ७८. नय प्रज्ञापन, पृष्ठ १८३-१८४ नय प्रज्ञापन, पृष्ठ २०४ नय प्रज्ञापन, पृष्ठ २१५ नय प्रज्ञापन, पृष्ठ २१८ नय प्रज्ञापन, पृष्ठ २१९ ८३. एम.ए. (प्रथम वर्ष) का तृतीय प्रश्नपत्र, खण्ड (ख)- जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), लाडनूं। ८४. प्रकाशमुनि जी महाराज के विचारों से युक्त २३.२.२००२ के पत्र के आधार पर ८५. गणधरवाद की प्रस्तावना से,पृष्ठ १२८ ८६. २२.१०.२००३ की चर्चा के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718