Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 661
________________ ६०० जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण विशिष्टपुद्गलपरावर्त्तेत्सर्पिण्यादिः ४७. ४८. ४९. उपदेश पद गाथा १६५ चैवशब्दोऽवधारणार्थः, ततः सर्वस्मिन्नेव नारकतिर्यग्नरामरभवभाविनि च सर्वस्मिन् निरवशेषे कुम्भामभोरूहप्रासादांकुरादौ निःश्रेयसाभ्युदयोपतापहर्षादौ वा बाह्याध्यात्मिक भेदभिन्ने कार्ये न पुनः क्वचिदेव एष कालादिकलापः कारणसमुदायरूपः बुधैः सम्प्रतिप्रवृत्तदुःषमातमस्विनी बललब्धोदयकुबोधतमः पूरापोहदिवाकराकार श्रीसिद्धसेनदिवाकरप्रभृतिभिः पूर्वसूरिभिः निर्दिष्टो निरूपितो जनकत्वेन जन्महेतुतया यतो वर्तते । - उपदेश पद, गाथा १६५ पर मुनि चन्द्रसूरि टीका सूत्रकृतांग की शीलांक टीका (अम्बिकादत्त व्याख्या सहित ), भाग तृतीय पृष्ठ ८७ ५१. सूत्रकृतांग की शीलांक टीका (अम्बिकादत्त व्याख्या सहित), भाग तृतीय, पृष्ठ ८८ ५०. ५२. तथाभव्यत्वस्य फलदानाभिमुख्यकारी, वसन्तादिवद् वनस्पतिविशेषस्य, कालसद्भावेऽपि न्यूनाधिकव्यपोहेन नियतकार्यकारिणी नियतिः अपचीयमानसंक्लेशं नानाशुभाशय- संवेदनहेतुः कुशलानुबन्धि कर्म, समुचितपुण्यसंभारो महाकल्याणाशयः प्रधान परिज्ञानवान् प्ररूप्यमाणार्थपरिज्ञानकुशलः पुरुषः ततस्तथाभव्यत्वमादौ येषां ते तथा तेभ्यः असौ वरबोधिलाभः । - धर्मबिन्दु, अध्ययन २.६८ विंशति विंशिका, बीजविंशिका, श्लोक ९ ५३. सव्वेवि यकालाई इह समुदायेण साहगा भणिया । जंति य एव य सम्मं सव्वस्स कज्जस्स ।। न हि कालादीहिंतो केवलएहिं तु जायए किंचि । इह मुग्गरंधणादिविता सव्वे समुदिता हेऊ ।। - सूत्रकृतांग की शीलांक टीका (अम्बिकादत्त व्याख्या सहित ), भाग तृतीय पृष्ठ ८९ जह गलक्खणगुणावेरुलियादी मणी विसंजुत्ता | रयणावलिववएसं ण लहंति महग्घमुल्लावि । । तह णिययवादसुवि णिच्छियावि अण्णोऽण्णपक्खनिरवेक्खा । सम्भद्दंसणसद्दं सव्वेऽवि गया ण पाविति । । जह पुण ते चेव मणी जहा गुणविसेसभागपडिबद्धा । रयणावलित्ति भण्णइ चयंति पाडिक्कसण्णाओ || तह सव्वे वाया जहाणुरूवविणिउत्तवत्तव्वा । सम्मर्द्दसणसद्दं लभंति ण- विसेससण्णाओ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718