Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२७० जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण १. वस्तु का साधारण धर्म : नियतिजन्यता
. सभी पदार्थ नियतरूप से ही उत्पन्न होते हैं। नियत रूप का अर्थ है- वस्तु का वह असाधारण धर्म जो उसके सजातीय और विजातीय वस्तुओं से व्यावृत्त होता है। यह रूप वस्तु के स्वभाव का अनुगामी होता है एवं सदृश पदार्थों में स्वभाव से ही अनुगत होता है। नियत रूप से पदार्थों की उत्पत्ति यह मानने को बाधित करती है कि सभी पदार्थ किसी ऐसे तत्त्व से उत्पन्न होते हैं, जिससे उत्पन्न होने वाले पदार्थों में नियतरूपता का नियमन होता है- पदार्थों के कारणभूत उस तत्त्व का ही नाम 'नियति' है। उत्पन्न होने वाले पदार्थों में नियतिमूलक घटनाओं का ही संबंध होता है इसलिए भी सभी को नियतिजन्य मानना आवश्यक है।३१ जैसा कि कहा है
नियतेनैव रूपेण सर्वे भावा भवन्ति यत्।
ततो नियतिजा ह्येते तत्स्वरूपानुवेधतः।।१३२ टीकाकार कहते हैं- तीक्ष्ण शस्त्र का प्रहार होने पर भी सबकी मृत्यु नहीं होती, किन्तु कुछ लोग ही मरते हैं और कुछ लोग जीवित रह जाते हैं। इसकी उत्पत्ति के लिए यह मानना आवश्यक है कि प्राणी का जीवन और मरण नियति पर निर्भर है। जिसका मरण जब नियतिसम्मत होता है तब उसकी मृत्यु होती है और जिसका जीवन जब तक नियति असम्मत है तब तक मृत्यु का प्रसंग बार-बार आने पर भी वह जीवित ही रहता है, उसकी मृत्यु नहीं होती।१२३ २. प्रमाणसिद्ध नियति
जो प्रमाणसिद्ध कारण है, उसका कोई भी विद्वान् किसी तर्क से खण्डन नहीं कर सकता, क्योंकि प्रमाणसिद्ध पदार्थ में बाधक तर्क का प्रवेश नहीं होता है। नियति के स्वरूप के अनुसार ही जगत् में घटादि कार्यों की उत्पत्ति देखी जाती है, इसलिए नियति प्रमाण से सिद्ध है। नियति का स्वरूप बताते हुए हरिभद्रसूरि कहते हैं
यहादैव यतो यावत्तदैव ततस्तथा। नियतं जायते, न्यायात्क एतां बाधितुं क्षमः ३४
जो कार्य जिस समय जिससे जिस रूप में उत्पन्न होना होता है, वह नियत रूप से उसी समय उसी कारण से उसी रूप में उत्पन्न होता है।
नियतिरूपविशिष्ट कार्य की उत्पत्ति ही नियति की सत्ता में प्रमाण है, क्योंकि यदि नियत रूप से कार्य की उत्पत्ति का कोई नियामक नहीं होगा तो कार्य की
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