Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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पुरुषवाद और पुरुषकार प्रकाशमान था। फिर उस कमल से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करते हुए समस्त प्राणियों के पितामह देवस्वरूप भगवान् ब्रह्मा उत्पन्न हुए। "
मधुसूदन ने दिन-रात, ऋतु के अनुसार काल, पूर्वाह्न तथा अपराह्न आदि समस्त कालविभाग की व्यवस्था की। फिर ब्राह्मण को मुख से, क्षत्रिय को भुजाओं से, वैश्यों को जांघो से और शूद्रों को पैरों से भगवान ने उत्पन्न किया।
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प्रध्याय सोऽसृजन्मेघांस्तथा स्थावरजंङ्गमान् ।
पृथिवीं सोऽसृजद् विश्वां सहितां भूरितेजसा । २८
उन्होंने ही अपने मन के संकल्प से मेघों, स्थावर, जंगम प्राणियों तथा समस्त पदार्थों सहित महान् तेज से संयुक्त समूची पृथ्वी की सृष्टि की।
इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण को सृष्टिकर्ता, संहारकर्ता तथा समस्त कारणों का कारण मानते हुए महाभारत में कहा है- 'एष कर्ता विकर्ता च सर्वकारणकारणम्। ९
श्रीमद् भगवद् गीता में भी श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं- 'बीज मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थं सनातनम् *" हे अर्जुन! समस्त प्राणियों का सनातन बीज तू मुझको जान | सबकी गति, भर्ता, प्रभु साक्षी, निवास, शरण, सुहृद्, उत्पत्ति और प्रलय का स्थान, निधान और अविनाशी बीज मैं ही हूँ। "
रामायण में पुरुषवाद
रामायण में महर्षि वशिष्ठ लोक की उत्पत्ति का वृत्तान्त सुनाते हुए कहते हैं
सर्व सलिलमेवासीत् पृथिवी तत्र निर्मिता ।
ततः समभवद् ब्रह्मा स्वयंभूदैवतैः सह । ।
स वराहस्ततो भूत्वा प्रोज्जहार वसुंधराम्।
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असृजच्च जगत् सर्वं सह पुत्रैः कृतात्मभिः ।।
सृष्टि के प्रारम्भकाल में सब कुछ जलमय ही था। उस जल के भीतर ही पृथ्वी का निर्माण हुआ। तदनन्तर देवताओं के साथ स्वयंभू ब्रह्मा प्रकट हुए। इसके बाद उन भगवान् विष्णुस्वरूप ब्रह्मा ने ही वराह रूप से प्रकट होकर जल के भीतर से इस पृथ्वी को निकाला और अपने कृतात्मा पुत्रों के साथ इस सम्पूर्ण जगत् की सृष्टि की।
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