Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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पुरुषवाद और पुरुषकार ५४१ १८६. चउव्विधे चियाए पण्णत्ते तंजहा- मणचियाए, वइचियाए, कायचियाए,
उवगरणचियाए। -स्थानांग सूत्र, स्थान ४, उद्देशक २, सूत्र ३५२ १८७. आचारांग १.५.२.१५५ १८८. आचारांग १.४.४.१४३ १८९. आचारांग १.२.१.६८ १९०. सूत्रकृतांग १.२.१.९९ १९१. सूत्रकृतांग १.१.१.१ १९२. सूत्रकृतांग १.२.२.१३५ १९३. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा।
वीरियं उवओगो य एवं जीवस्स लक्खणं।। -उत्तराध्ययन २८.११ १९४. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक २०, उद्देशक ३, सूत्र १ १९५. "हं ता गोयमा! जीवे णं सउट्ठाणे सकम्मे सबले सवीरिए सपुरिसक्कारपरक्कमे
आयभावेणं जीवभावं उवदंसेतीति वत्तव्वं सिया।" -व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक २,
उद्देशक १०, सूत्र ९(१) १९६. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक १४, उद्देशक ५, सूत्र १० से २० १९७. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक १२, उद्देशक ५, सूत्र ११ १९८. स्थानांग, स्थान २, उद्देशक १, सूत्र १०७ १९९. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन १८.३३ २००. सूत्रकृतांग १.२.१.१३ २०१. सूत्रकृतांग १.२.२.१५ २०२. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक १, उद्देशक ८, सूत्र ११ २०३. पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहाऽवरं।
तब्मावादेसतो वा वि, बालं पंडितमेव वा।। -सूत्रकृतांग १.८.३ २०४. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २९ २०५. उत्तराध्ययन सूत्र ३०.६ २०६. आचारांग सूत्र १.३.१ सूत्र १०८
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