Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैनदर्शन की नयदृष्टि एवं पंच समवाय
सब्भावो हि सहावो गुणेहिं सगपज्जएहिं चित्तेहिं । दव्वस्स सव्वकालं उप्पादव्ययधुवत्तेहिं । ।
विस्रसा परिणमन में स्वभाव की कारणता
विभिन्न द्रव्यों के पर्याय- परिणमन में उन द्रव्यों का स्वभाव सबसे प्रमुख कारण है। षड्द्रव्यों में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय का परिणमन स्वभाव से होता है। इनके परिणमन में पुरुषार्थ या प्रयोग को कारण नहीं
माना जा सकता।
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जैनागमों में तीन प्रकार के परिणमन का उल्लेख मिलता है- विस्रसा परिणमन, प्रयोग परिणमन, मिश्र परिणमन । २ षड्द्रव्यों में पुद्गल ही एक ऐसा द्रव्य है जिसका परिणमन तीनों प्रकार का होता है, किन्तु धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय का विस्रसा परिणमन होता है। जिसमें एकमात्र स्वभाव को ही कारण माना जा सकता है। है।
जीव का अनादि पारिणामिक भाव : स्वभाव
अनुयोगद्वार में अनादि पारिणामिक भावों की चर्चा है । वहाँ तीन प्रकार के अनादि पारिणामिक भाव निरूपित हैं- जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व । जीवत्व से तात्पर्य है कि जीव कभी अजीव नहीं बनता और अजीव (जड़) कभी जीव में परिणत नहीं होता। भव्यत्व का अर्थ है जीव की वह प्राथमिक योग्यता जिसके कारण वह मोक्ष में जाने का अधिकारी बन सकता है। अभव्यत्व जीव का ऐसा स्वाभाविक भाव है जो उसे मोक्ष में जाने के अयोग्य घोषित करता है। भव्यत्व और अभव्यत्व का परस्पर संक्रमण नहीं होता, क्योंकि ये अनादि पारिणामिक भाव हैं और स्वाभाविक हैं। इनका कर्मों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम से कोई संबंध नहीं है।
जीव के भव्यत्व के संबंध में व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में जयन्ती श्राविका के द्वारा भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि हे भगवन्! जीवों में भवसिद्धिकत्व स्वभाव से है या परिणाम से? भगवान ने उत्तर दिया- जयन्ती यह भवसिद्धिकत्व स्वभाव से है परिणाम से नहीं।
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अष्ट कर्मों में स्वभाव की कारणता
जैन कर्म - सिद्धान्त में प्रत्येक कर्म का अपना स्वभाव माना गया है। वह कर्म अपने स्वभाव अर्थात् प्रकृतिबंध के अनुसार ही फल प्रदान करता है। जैन दर्शन में ऐसे ८ कर्म प्रतिपादित हैं - १. ज्ञानावरण २. दर्शनावरण ३. वेदनीय ४. मोहनीय ५. आयुष्य ६. नाम ७. गोत्र ८. अन्तराय । इनमें प्रत्येक कर्म का स्वभाव निम्नानुसार है
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