Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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५५६ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण काल एवं क्षेत्र में नियति
अकर्म भूमि में पुरुष-स्त्री के युगलिकों का उत्पन्न होना तथा कर्मभूमि में प्रथम तीन आरों में युगलिकों की उत्पत्ति स्वीकार करना काल एवं क्षेत्र की नियति है। अकर्मभूमि में नपुंसक मनुष्य का उत्पन्न न होना भी नियति को इंगित करता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में नियति पोषक तत्त्व
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में नियति को पुष्ट करने वाले अनेक वाक्य प्राप्त होते हैं। गौतम स्वामी के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में भगवान के कुछ वचन इस प्रकार हैंप्रश्न- भगवन्! जम्बूद्वीप में जघन्य (कम से कम) तथा उत्कृष्ट (अधिक से
अधिक) समग्रतया कितने तीर्थकर होते हैंउत्तर- गौतम! कम से कम चार तथा अधिक से अधिक ३४ तीर्थकर होते हैं। प्रश्न- भगवन्! जम्बूद्वीप में कम से कम तथा अधिक से अधिक कितने चक्रवर्ती
होते हैं? गौतम! कम से कम ४ तथा अधिक से अधिक ३० चक्रवर्ती होते हैं। जितने
चक्रवर्ती होते हैं, उतने ही बलदेव होते हैं, वासुदेव भी उतने ही होते हैं। प्रश्न- जम्बूद्वीप में निधि-रत्न-उत्कृष्ट निधान कितने होते हैं? उत्तर- गौतम! जम्बूद्वीप में निधि रत्न ३०६ होते हैं।२८ सिद्धों में नियति
जैन दर्शन में सिद्धों के संबंध में विविध प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है, उनमें कुछ वर्णन नियति की मान्यता को पुष्ट करता हुआ प्रतीत होता है।
(१) पूर्वभवाश्रित सिद्धों के संबंध में कहा है- पहले, दूसरे और तीसरे नरक से निकलकर आने वाले जीव एक समय में १० सिद्ध होते हैं। चौथे नरक से निकले हुए ४ सिद्ध होते हैं। पृथ्वीकाय और जलकाय से निकले हुए ४ सिद्ध होते हैं। पंचेन्द्रिय गर्भज तिर्यच और तिर्यचनी की पर्याय से तथा मनुष्य की पर्याय से निकलकर मनुष्य हुए १० जीव सिद्ध होते हैं। मनुष्यनी से आये हुए २० सिद्ध होते हैं। भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देवों से आये हए २० सिद्ध होते हैं। वैमानिकों से आये १०८ सिद्ध होते हैं और वैमानिक देवियों से आये हुए २० सिद्ध होते हैं।२९
उत्तर
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