Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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नियतिवाद ३०७ पुराण, संस्कृत महाकाव्य एवं नाटकों में भी नियति के प्रतिपादक उल्लेख उपलब्ध होते हैं। वेद में नियतिवाद का साक्षात् उल्लेख नहीं है किन्तु पं. मधुसूदन ओझा ने नासदीय सूक्त के आधार पर जगदुत्पत्ति के दश वाद प्रस्तुत करते हुए अपरवाद के अन्तर्गत स्वभाववाद के चार रूपों में एक रूप नियतिवाद बताया है। उन्होंने नियतिवाद के स्वरूप को स्पष्ट भी किया है, यथा
यदैव यावदथो यतो वा तदैव तत्तावदथो ततो वा। प्रजायतेऽस्मिन्नियतं नियत्याक्रान्तं हि पश्याम इदं समस्तम्।।२५२
श्वेताश्वतरोपनिषद् में 'कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा, भूतानियोनिः पुरुष इति चिन्त्या ५२ पंक्ति में नियतिवाद का अस्तित्व ज्ञापित होता है। इस उपनिषद् के शांकरभाष्य में नियति का स्वरूप इस प्रकार प्रतिपादित हैनियतिरविषमपुण्य- पापलक्षणं कर्म तद्वा कारणम्।२५४ अर्थात् पुण्य-पाप रूप जो अविषम कर्म हैं, वे नियति कहे जाते हैं। अविषम कर्म का फल कभी विपरीत नहीं होता। महोपनिषद् एवं भावोपनिषद् के उद्धरणों से ज्ञात होता है कि नियति एक नियामक तत्त्व है। हरिवंश पुराण, वामनपुराण, नारदीयपुराण में दैव अथवा भवितव्यता के रूप में नियति की चर्चा है। दुर्वारा हि भवितव्यता५५, दुर्लघ्यं भवितव्यता५६ आदि वाक्य हरिवंश पुराण में तथा 'यद्भावि तद्भवत्येव यदभाव्यं न तद्भवेत्५७ आदि वाक्य नारदीय पुराण में पुष्टि करते हैं। रामायण में 'नियतिः कारणं लोके नियतिः कर्मसाधनम् २५८ सदृश वाक्य नियति की महत्ता को स्थापित करते है। महाभारत में वेदव्यास ने नियति के स्वरूप को अभिव्यक्त करते हुए कहा है
यथा यथास्य प्राप्तव्यं प्राप्नोत्येव तथा तथा।
भवितव्यं यथा यच्च भव्यत्वे तथा तथा।।२५९ संस्कृत साहित्य के विभिन्न ग्रन्थों में नियतिवाद या भवितव्यता का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। महाकवि कालिदास विरचित अभिज्ञान शाकुन्तल में 'भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र २६०, 'भवितव्यता खलु बलवती६९ आदि वाक्य इसके साक्षी हैं। हितोपदेश, पंचतन्त्र आदि में भी नियति का महत्त्व स्थापित है। कल्हण की राजतरंगिणि में 'शक्तो न कोऽपि भवितव्याविलंघनायाम् २६२ वाक्य नियति की महत्ता का प्रकाशक है।
___ साहित्यशास्त्री मम्मट विरचित काव्यप्रकाश में 'नियति' शब्द का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है
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