Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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नियतिवाद ३०९ की गई है तथा कहा गया है कि नियति कंचुक के कारण प्रत्येक प्राणी अपने पूर्व कर्मों के फल को भोगने के लिए बाध्य बना रहता है।
जैन दर्शन के विभिन्न ग्रन्थों में नियतिवाद का निरूपण हुआ है । सूत्रकृतांग सूत्र में, प्रश्नव्याकरण सूत्र और उसकी टीकाओं में, नन्दीसूत्र की अवचूरि में नियतिवाद के संबंध में जो चर्चा हुई है, उसका संक्षेप निम्नानुसार है
१. सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पौण्डरीक नामक अध्ययन में नियतिवादी के मत का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि दुःख-सुख की प्राप्ति अपने या दूसरे के निमित्त से नहीं अपितु नियति के कारण से होती है। संसार में जो त्रस व स्थावर प्राणी है वे सब नियति के प्रभाव से ही औदारिक आदि शरीर की रचना को प्राप्त करते हैं। वे नियति के कारण ही बाल्य, युवा और वृद्धावस्था को प्राप्त करते हैं तथा शरीर से पृथक् होते हैं।
२. स्थानांग सूत्र एवं भगवती सूत्र में नियतिवाद का सीधा उल्लेख तो नहीं मिलता किन्तु चार प्रकार के वादी समवसरणों का कथन किया गया है- क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी । इनमें क्रियावादी और अक्रियावादी के अन्तर्गत नियतिवाद के क्रमशः ३६ एवं १४ भेद किए गए हैं।
३. नन्दीसूत्र की अवचूरि में नियतिवाद का स्वरूप स्पष्ट रूप से प्रतिपादित है । तदनुसार नियति एक पृथक् तत्त्व है जिसके वश में सभी भाव हैं और वे नियत रूप से ही उत्पन्न होते हैं। जो, जब, जिससे होना होता है वह तब, उससे ही नियत रूप से प्राप्त होता है। ऐसा नहीं मानने पर कार्य-कारण व्यवस्था और प्रतिनियत व्यवस्था संभव नहीं है।
४. प्रश्नव्याकरण सूत्र में नियतिवादियों के मत का उल्लेख हुआ है- णत्थेत्थ किंचि कयगं तत्तं लक्खणविहाणणियतीए कारियं एवं केइ जंपन्ति।१६८ टीकाकार अभयदेवसूरि ने नियतिवाद को प्रस्तुत करते हुए कहा है कि नियतिवादियों के अनुसार पुरुषकार को कार्य की उत्पत्ति में कारण मानने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके बिना नियति से ही समस्त प्रयोजनों की सिद्धि हो जाती है। टीकाकार ज्ञानविमलसूरि स्पष्ट करते हैं कि नियतिवादी नियति से ही जगत् की उत्पत्ति अंगीकार करते हैं तथा भवितव्यता को सर्वत्र बलीयसी बतलाते हैं।
५. आचारांग सूत्र की शीलांक टीका में नियति को स्पष्ट करते हुए कहा है'का पुनरियं नियतिरिति उच्यते, पदार्थानामवरयंतया यहाथाभवने
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