Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२८६ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण नहीं होती है। जितने काल में घट का निर्माण होता है वह काल नियति है। जिन वर्ण, आकृति आदि से घटादि का निर्माण होता है, वह भाव नियति है। इस प्रकार नियति के एक होने पर भी वस्तुओं की रचना सम्भव है।१७९ नियति का यह सूत्र है कि जो अभावी है वह नहीं होता और जो भावी है उसका नाश नहीं होता।८०
नियति एक होकर भी भिन्न-भिन्न कार्यों को करने में समर्थ होती है तथा उसके अनेक रूप होने पर भी कार्य और कारण से अभिन्न होती है। जिस प्रकार एक ही लोक नदी, पृथ्वी, पर्वत, ग्राम, उद्यान आदि आकारों से ग्रहण किया जाता हुआ भेद को प्राप्त होता है उसी प्रकार नियति एक होते हुए भी भेदों को प्राप्त करती है। यह बाह्य उदाहरण से सिद्ध हुआ। अब आन्तरिक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार ज्ञान एक होने पर भी अनेक बोध्य आकारों को ग्रहण कर लेता है उसी प्रकार यह नियति भी विभिन्न आकारों को ग्रहण करती है। पृथ्वी, अम्बु, वायु आदि अनेक स्वरूप वाले अर्थों से एक ब्रीहि (चावल) उत्पन्न होता है। इसी प्रकार यह नियति अनेक होकर भी एक ही है।८१
. यदि कहीं उत्पत्ति आदि में अनियम देखा जाता है तब भी वहाँ नियति को ही कारण मानना चाहिए। वस्तु के स्वभाव का व्यतिक्रम भी नियति के कारण होता है'वस्तुस्वभावव्यतिक्रमश्च नियतिवशादेव ८२
नियति से कार्य-कारण की अथवा साध्य-साधन की समस्त व्यवस्था बन जाती है। दण्ड आदि अनेक कारकों के द्वारा घट साध्य की सिद्धि में नियति के बल से ही कार्य सिद्ध होता है। अन्य समस्त कारक नियति के कारण नियत क्रिया के ही साधन बनते हैं। अनुद्भूत रूपादि की अभिव्यक्ति से ही कार्य की सिद्धि होती है तथा वह नियति से ही संभव होती है। पाक क्रिया में नियति ही कारण होती है, इसलिए कहा गया है- 'षष्टिका षष्टिरात्रेण पच्यन्ते' (६० दिनों में पकने वाली वस्तु ६० रात्रियों के बीतने पर ही पकती है) देश, काल, कर्ता, करण आदि की नियति से ही पाक आदि क्रिया दिखाई पड़ती है।१८३
इस प्रकार अव्यक्त अर्थ की अभिव्यक्ति में सब कुछ नियत है। इसलिए किसी कार्य को मैंने किया यह अभिमान मिथ्या है। नियति को स्वीकार करने पर कोई अभिमान नहीं रह पाता। नियतिवाद को लेकर कतिपय दार्शनिकों की शंका इस प्रकार है- मात्र बीज की नियति से आम्रफल का पाक नहीं होता है, उसमें भूमि, अम्बु, काल, आतप, वायु आदि की भी हेतुता रहती है। भूमि का खनन करने पर भी फल आदि की प्राप्ति नहीं होती है, किन्तु काल आने पर पाक देखा जाता है। मात्र काल आने पर भी पाक नहीं होता, अपितु द्रव्यान्तर संयोग की उपस्थिति आवश्यक
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