Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैनदर्शन में कारण- कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
मंखलि गोशालक के मान्य सिद्धान्तों का कोई लिखित व्याख्या ग्रन्थ नहीं है। इस स्थिति में जैन-बौद्ध आगमों में प्राप्त मंखलि गोशालक की चर्चा ही नियतिवाद को प्रकाशित करने का प्रमुख माध्यम है। सूत्रकृतांग, भगवती और उपासकदशांग जैसे प्रमुख जैनागमों में नियतिवाद का उपस्थापन हुआ है। क्रियावादी - अक्रियावादी को नियति के अधीन स्वीकार करते हुए सूत्रकृतांग में कहा है- 'जे य पुरिसे किरियमाइक्खड़, जे य पुरिसे णोकिरियमाइक्खड़, दो वि ते पुरिसा तुल्ला एगट्ठा कारणमावन्ना। अर्थात् नियति की प्रेरणा से क्रियावादी क्रिया का समर्थन करता है और अक्रियावादी अक्रिया का प्रतिपादन करता है। नियति के अधीन होने के कारण ये दोनों ही समान हैं । भगवती सूत्र के १५ वें शतक में नियतिवाद के निरूपक गोशालक का विस्तार से परिचय सम्प्राप्त होता है । उपासकदशांग सूत्र में आजीवक मत के उपासक सकडालपुत्र का भगवान महावीर के साथ संवाद समुपलब्ध है।
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आचारांग सूत्र और सूत्रकृतांग की शीलांक टीकाओं में भी विभिन्न कोणों से नियतिवाद का निरूपण मिलता है । नन्दीसूत्र की अवचूरि में लिखा है
नियतेनैव रूपेण, सर्वे भावा भवंति यत् ।
ततो नियतिजा होते, तत्स्वरूपानुवेधतः ।।७
नियत रूप से ही सब पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इसलिए ये अपने स्वरूप से नियतिज है। अवचूरि में आए नियतिवाद के अंश को ही हरिभद्र सूरि ने षड्दर्शनसमुच्चय में उद्धृत किया है । १८
सिद्धसेन दिवाकर ने द्वात्रिंशत् - द्वात्रिंशिका के अन्तर्गत सोलहवीं द्वात्रिंशिका नियति पर ही रची है, जिसका नाम 'नियति द्वात्रिंशिका ' है । इस द्वात्रिंशिका में आचार्य सिद्धसेन ने नियतिवाद की सिद्धि में कर्तृत्ववाद का खण्डन और नियतिवाद का स्वरूप प्रस्तुत किया है। इसमें विशेष बात यह है कि नियति शब्द का एक बार के प्रयोग के बिना भी इसमें सम्पूर्ण नियतिवाद को प्रस्तुत कर लेखक ने अपनी लेखनी की अद्भुतता प्रकट की है। 'गागर में सागर' उक्ति को चरितार्थ करने वाले इस द्वात्रिंशिका के श्लोकों का सुन्दर एवं सटीक विवेचन आचार्य विजयलावण्य सूरि ने अपनी टीका में किया है।
आचार्य हरिभद्रसूरि (८वीं शती) ने भी यथाप्रसंग नियतिवाद का स्वरूप अपने ग्रन्थों में उद्घाटित किया है। शास्त्रवार्तासमुच्चय, धर्मसंग्रहणि, लोकतत्त्व निर्णय, षड्दर्शन समुच्चय आदि ग्रन्थों में नियतिवाद के निरूपण के साथ निरसन भी
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