Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२५८ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
क्रियावाद में कालवाद, आत्मवाद, नियतिवाद और स्वभाववाद का तथा अक्रियावाद में कालवाद आदि पाँच के अतिरिक्त यदृच्छावाद का भी समावेश हुआ है। अज्ञानवादी और विनयवादी के भेदों में काल आदि का उल्लेख नहीं है।
क्रियावादी और अक्रियावादी के अन्तर्गत प्राप्त 'नियतिवाद' का निम्नांकित स्वरूप व्यक्त हुआ हैक्रियावादी में नियतिवाद के भेद १. जीव स्वत: नित्य नियति से २. जीव स्वतः अनित्य नियति से ३. जीव परत: नित्य नियति से ४. जीव परतः अनित्य नियति से ५. अजीव स्वतः नित्य नियति से ६. अजीव स्वत: अनित्य नियति से ७. अजीव परत: नित्य नियति से ८. अजीव परत: अनित्य नियति से ९. आस्रव स्वतः नित्य नियति से १०. आस्रव स्वत: अनित्य नियति से ११. आस्रव परत: नित्य नियति से ___ १२. आस्रव परत: अनित्य नियति से १३. बन्ध स्वतः नित्य नियति से १४. बंध स्वत: अनित्य नियति से १५. बंध परत: नित्य नियति से १६. बंध परत: अनित्य नियति से १७. संवर स्वत: नित्य नियति से १८. संवर स्वत: अनित्य नियति से १९. संवर परत: नित्य नियति से २०. संवर परतः अनित्य नियति से २१. निर्जरा स्वतः नित्य नियति से __ २२. निर्जरा स्वतः अनित्य नियति से २३. निर्जरा परत: नित्य नियति से २४. निर्जरा परत: अनित्य नियति से २५. पुण्य स्वतः नित्य नियति से २६. पुण्य स्वतः अनित्य नियति से २७. पुण्य परत: नित्य नियति से २८. पुण्य परतः अनित्य नियति से २९. पाप स्वतः नित्य नियति से ३०. पाप स्वत: अनित्य नियति से ३१. पाप परत: नित्य नियति से ३२. पाप परत: अनित्य नियति से ३३. मोक्ष स्वतः नित्य नियति से ३४. मोक्ष स्वत: अनित्य नियति से ३५. मोक्ष परत: नित्य नियति से ३६. मोक्ष परत: अनित्य नियति से
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