Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
नास्ति जीवः
नास्ति जीवः स्वतः
नास्ति जीवः परतः
काल
ईश्वर
काल
ईश्वर
आत्मा
स्वभाव
आत्मा
स्वभाव
नियति
यदृच्छा
नियति
यदृच्छा
नास्ति जीव के १२ भेद
१. नास्ति जीव स्वतः काल से २. नास्ति जीव परतः काल से ३. नास्ति जीव स्वतः ईश्वर से ४. नास्ति जीव परत: ईश्वर से ५. नास्ति जीव स्वतः आत्मा से ६. नास्ति जीव परतः आत्मा से ७. नास्ति जीव स्वतः स्वभाव से ८. नास्ति जीव परतः स्वभाव से ९. नास्ति जीव स्वतः नियति से १०.नास्ति जीव परत: नियति से ११.नास्ति जीव स्वतः यदृच्छा से १२.नास्ति जीव परतः यदृच्छा से
ये जीव के १२ भेद हुए। इसी प्रकार अजीव, आम्रव, बंध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष के भी १२ भेद मिलाकर ७ x १२ = ८४ भेद होते हैं।
__ अज्ञानवादी- कुत्सित ज्ञान को अज्ञान कहते हैं। अज्ञान को भी श्रेयस्कर समझने वाले अज्ञानिक व अज्ञानवादी कहलाते है अथवा अज्ञानपूर्वक जिनका आचरण होता है, वे अज्ञानी कहलाते हैं। इनका मन्तव्य है कि अज्ञानपूर्वक किया गया कर्मबंध विफल हो जाता है। जबकि ज्ञानपूर्वक किये गए कर्मबंध का विपाक दारुण होता है एवं अवश्य वेदन करने योग्य होता है। अज्ञानवादियों में शाकल्य, सात्यमुनि, मौद, पिप्पलाद, बादरायण, जैमिनि, वसु आदि की गणना की गई है।०२ पूज्यपाद देवनन्दि ने हिताहित की परीक्षा में असमर्थ होने को अज्ञानिकता कहा है।०३
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