Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कालवाद ९१ जीव के २० भेद
१. जीव स्वतः नित्य काल से २. जीव परत: नित्य काल से ३. जीव स्वत: नित्य ईश्वर से ४. जीव परत: नित्य ईश्वर से ५. जीव स्वतः नित्य आत्मा से ६. जीव परत: नित्य आत्मा से ७. जीव स्वत: नित्य नियति से ८. जीव परत: नित्य नियति से ९. जीव स्वत: नित्य स्वभाव से १०.जीव परत: नित्य स्वभाव से ११.जीव स्वत: अनित्य काल से १२.जीव परत: अनित्य काल से १३.जीव स्वतः अनित्य ईश्वर से १४.जीव परत: अनित्य ईश्वर से १५.जीव स्वत: अनित्य आत्मा से १६.जीव परत: अनित्य आत्मा से १७.जीव स्वत: अनित्य नियति से १८.जीव परत: अनित्य नियति से १९.जीव स्वतः अनित्य स्वभाव से २०.जीव परत: अनित्य स्वभाव से
इस प्रकार जीव के २० भेद हुए। इसी प्रकार अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, पुण्य, पाप तथा मोक्ष के भी २० भेद होकर क्रियावादी के कुल २० x ९ = १८० भेद होते हैं।
अक्रियावादी- जीवादि पदार्थ नहीं हैं ऐसा कहने वाले अक्रियावादी हैं। किसी भी एक क्षण रहने वाले पदार्थ में क्रिया संभव नहीं है, क्योंकि उत्पत्ति के अनन्तर ही उसका विनाश हो जाता है। इस प्रकार निरूपण करने वाले अक्रियावादी हैं। ये आत्मा आदि का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते। अक्रियावादियों में क्रोकुल, काण्ठेविद्धि, रोमक, सुगत आदि प्रमुख हैं।" स्थानांग सूत्र की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने अक्रियावादियों को नास्तिक कहा है। भगवती सूत्र की वृत्ति में अभयदेव सूरि ने बौद्धों को अक्रियावादी बताते हुए स्पष्ट किया है कि उनके मत में क्रिया का कोई महत्त्व नहीं है, चित्त शुद्धि ही प्रमुख है।००
अक्रियावादी पुण्य-पाप को छोड़कर जीवादि सात पदार्थों को स्व-पर के आधार से काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव और यदृच्छा इन छह से गुणित कर चौरासी भेद करते हैं।०१ जो निम्न हैं
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