Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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स्वभाववाद १४७ प्रकट होती है, किन्तु उसका यह स्वभाव क्यों है, इसका उत्तर अव्यपदेश्य है। अत: इस स्थिति में हेतु संबंधी प्रश्न की परम्परा निवृत्त हो जाती है। जिनके मत में कारण अनित्य है उनके अनुसार हेतु की शक्ति या सामर्थ्य ही स्वभाव माना जाता है। हेतु में वह सामर्थ्य क्यों है, इसका उत्तर अव्यपदेश्य है।६९
वाक्यपदीय के द्वितीय वाक्य काण्ड में स्वाभाविकी प्रतिभा का विवेचन करते हुए कहा है कि कई प्राणियों में जन्मान्तर के अभ्यास से यह प्रतिभा उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिए
स्वरवृत्तिं विकुरुते मधौ पुंस्कोकिलस्य कः।
जन्त्वादय: कुलायादिकरणे केन शिक्षिताः।। बसंत ऋतु में पुरुष-कोकिल स्वभाव से ही पंचम स्वर में गान करता है। उसको किसी प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती। विभिन्न प्रकार के प्राणी स्वभाव से ही अपना घोंसला या घर बनाते हैं, उन्हें किसी प्रकार की शिक्षा नहीं दी जाती। मकड़ी के द्वारा जाला बनाना, बया के द्वारा घोंसला बनाना उनकी स्वाभाविकी प्रतिभा का निदर्शन है। इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए आगे कहा है
आहारप्रीत्यापद्वेषप्लवनादिक्रियाषु कः।
जात्यान्वयप्रसिद्धासु प्रयोक्ता मृगपक्षिणाम्।।"
आहार, प्रीति, अपद्वेष, प्लवन आदि क्रियाएँ अनेक पशुओं और पक्षियों में जाति कुल आदि के आधार पर स्वाभाविक रूप से पायी जाती है। इसे स्पष्ट करते हुए व्याख्याकार ने कहा है- मार्जार का आहार मूषक होता है, यह शिक्षा मार्जार को किसी ने नहीं दी वह स्वाभाविक रूप से अपने आहार को जानता है। कुत्ते का अपने स्वामी के प्रति प्रेम स्वाभाविक रूप से होता है। इसी प्रकार विभिन्न प्राणियों में द्वेष भी स्वाभाविक माना जाता है। जैसे- मूषक और मार्जार में, गौ और व्याघ्र में, सर्प और नेवले में, अश्वं और महिष में पारस्परिक द्वेष स्वाभाविक रूप से होता है। भैस, गाय आदि की जल में प्लवन क्रिया भी स्वाभाविक होती है।७२ बौद्ध ग्रन्थ तत्त्वसंग्रह में स्वभाववाद की चर्चा
स्वभाववाद के अनुसार पदार्थ या कार्य की उत्पत्ति स्वतः होती है, उसमें किसी अन्य कारण की अपेक्षा नहीं होती। उनका मन्तव्य है पदार्थ स्वतः ही उत्पन्न होते हैं- 'स्वत एव भावा जायन्ते इति। ३
बौद्ध दार्शनिक शान्तरक्षित (७०५ ईस्वी) द्वारा रचित तत्त्वसंग्रह में स्वभाववाद को प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि स्वभाववादियों के अनुसार पदार्थों
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