Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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स्वभाववाद २०१ (i) अर्थ पर्याय- प्रत्येक द्रव्य में एक अगुरुलघुनामक गुण है, उसी गुण के कारण प्रत्येक द्रव्य में षड्हानि-वृद्धियाँ सदैव होती रहती हैं। इन छः द्रव्यों में अपने-अपने स्वभाव के अनुरूप घटित होने वाली ये स्वाभाविक अर्थ पर्याय हैं, ये अत्यन्त सूक्ष्म होती हैं। वाणी और मन के अविषयभूत होती हैं, आगम प्रमाण से ही इन्हें स्वीकार किया जाता है।
(ii) व्यंजन पर्याय - जिस शरीर से मुक्ति प्राप्त होती है उस अन्तिम शरीर से कुछ कम सिद्ध जीव का आकार होता है, वह स्वभाव द्रव्यव्यंजन पर्याय है। जीव के अनन्तचतुष्टय- अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य स्वभावगुण व्यंजन पर्याय है। पुद्गल की एक शुद्ध परमाणु रूप अवस्था स्वभावद्रव्यव्यंजन पर्याय है। उस शुद्ध परमाणु में एक वर्ण, एक रस, एक गन्ध और परस्पर में अविरुद्ध दो स्पर्श यथा स्निग्ध रुक्ष में से एक और शीत-उष्ण में से एक ये पुद्गल की स्वभावगुण व्यंजन पर्याय है। वस्तु-देश-जाति-कालगत स्वभाव
श्री धरणेन्द्रसागर जी ने हरिभद्र विरचित योगशास्त्र पर व्याख्या करते हुए स्वभाव को चार भागों में विभक्त किया है - १. वस्तु स्वभाव २. देश स्वभाव ३. जाति स्वभाव और ४. काल स्वभाव।२८५
वस्तु स्वभाव- वस्तु की स्वतंत्र प्रवृत्ति, उसका स्वभाव है। स्वभाव के विरुद्ध वस्तु का निर्माण करना अशक्य है। जैसे- प्याज को सैकड़ों वर्ष तक खेत में रोपा जाय तो भी प्याज से जामफल उत्पन्न करना शक्य नहीं है, क्योंकि स्वभाव अपरिवर्तनीय है। मछली वर्षों तक पानी में रहती है किन्तु मनुष्य उतने समय तक पानी में नहीं रह सकता क्योंकि उसका ऐसा स्वभाव नहीं है। देश स्वभाव- भिन्न-भिन्न देश के जलवायु आदि का जो प्रभाव शरीर पर होता है, वह देश स्वभाव है। जैस - यूरोप निवासियों की चमड़ी गोरी होती है। अफ्रीका निवासी हबशियों की चमड़ी काली होती है। भारतीयों की चमड़ी गेहूँ रंग की होती है। केशर सिर्फ कश्मीर में पैदा होती है और आम भी भारतीय मिट्टी में ही पैदा होते हैं, अन्यत्र नहीं। यह सब देश का प्रभाव है।
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