Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२१८ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
'अग्निरुष्णो जलं शीतं समस्पर्शस्तथानिलः। केनेदं चित्रितं तस्मात्स्वभावात्तद्व्यवस्थितिः।।
-सर्वदर्शन संग्रह, चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, चार्वाक दर्शन, पेज १९ ८५. प्रश्नव्याकरण सूत्र, श्रुतस्कन्ध १, अध्याय २, सूत्र ५० ८६. प्रश्नव्याकरण सूत्र पर अभयदेव की वृत्ति, श्री आगमोदय समिति, निर्णयसागर
यन्त्रालय द्वारा मुद्रित, धर्मशाला, गोपीपुरा, सूरत, वि.सं. १९७५, अधर्मद्वारे, मृषावादिनः सूत्र ७ प्रश्नव्याकरण, श्रीमद् ज्ञानविमलसूरिविरचित वृत्ति, शारदा मुद्रणालय, रतनपोल,
अहमदाबाद, वि.सं. १९९३, अधर्मद्वारे, मृषावादिनः सूत्र ७ ८८. (१) नन्दी सूत्र, मलयगिरि अवचूरि, पृ. १७९
(२) षड्दर्शनसमुच्चय, पृ. १९-२० पर भी उपर्युक्त अंश उद्धृत ८९. श्री लोक तत्त्व निर्णय, श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, पृ. २८, श्लोक ३ ९०. श्री लोक तत्त्व निर्णय, श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, पृ. २३, श्लोक २० ९१. शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबक २, श्लोक ५७ ९२. आकाशत्वादीनां क्वाचित्कत्ववद् घटादीनां कादाचित्कत्वस्येतराऽनियम्यत्वात्।
-शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबक २, श्लोक ५७ की टीका ९३. 'भवनस्वभावत्वे घटः सर्वदा भवेदि ति चेत्।'
-शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबक २, श्लोक ५७ की टीका शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्त. २, श्लोक ५७ की टीका उपादानस्वभावस्यैवोपादेयगतस्वभावरूपोपकारजनकस्योपादेउपादानस्वभावस्यैवोपादेयगतस्वभावरूपोपकारजनकस्योपादे
- शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबकर, श्लोक ५७ की टीका ९६. शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबक २, श्लोक ५८ का अंश ९७. 'वर्तन्तेऽथ निवर्तन्ते कामचारपराङ्मुखाः'
-शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबक २, श्लोक ५८ का अंश ९८. शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्त. २, श्लोक ५९
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