Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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स्वभाववाद २०७
ने तज्जीवतच्छरीरवादी के मत में स्वभाव से ही जगत् की विचित्रता को उत्पन्न बताया है। कोई धनवान, काई दरिद्र, कोई सुन्दर, कोई कुरूप, कोई सुखी, कोई रोगी, कोई नीरोग स्वभाव से ही होते हैं। स्वभाव से ही कोई शिलाखण्ड देव प्रतिमा बनता है तो कोई पैरों की टक्कर खाता है।
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८. द्वादशारनयचक्र में स्वभाववाद का प्राचीन स्वरूप अभिव्यक्त हुआ है। वहाँ कहा गया है- 'युगपदयुगपद् घटरूपादीनां व्रीह्यंकुरादीनां च तथा तथा भवनादेव तु स्वभावोऽभ्युपगतः । 'तुल्य भूमि, जल आदि के होने पर भी कण्टकादि भिन्न-भिन्न स्वरूप की वस्तुएँ प्रत्यक्ष होती हैं, जिससे स्वभाव की कारणता सिद्ध होती है। द्वादशारनयचक्र में स्वभाव के अतिरिक्त द्रव्यों की अपेक्षा रखने पर स्वभाववादियों को आपत्ति नहीं है किन्तु वे उसे भी स्वभाव के अन्तर्गत ही सम्मिलित करते हैं। वे कहते हैं कि भूमि, अम्बु आदि द्रव्यों की अपेक्षा रखकर कण्टकादि की उत्पत्ति होती है, यह भी स्वभाव ही है क्योंकि भूमि आदि निमित्तों की निमित्तता भी स्वाभाविक है। जिसमें जो स्वभाव है उससे वही वस्तु प्रकट होती है। मृदादि में विद्यमान घटादि की अपने निमित्तों की सहायता से स्वाभाविक उत्पत्ति होती है, आकाश आदि में नहीं होती है। दूध से दही, मक्खन, घृत आदि अवस्थाएँ भी स्वभावजन्य हैं। वन्ध्या के पुत्र नहीं होता इसमें भी स्वभाव कारण है।
९. एक ही स्वभाव व शक्ति भेद से कारक भेद को प्राप्त होता है। वही कर्ता, कर्म, कारण आदि स्वरूपों को प्राप्त होता है।
१०. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण स्वभाववाद को प्रस्तुत करते हुए इसे वेद वाक्य से संबद्ध करते हैं, यथा- " विज्ञानघन एवैतेभ्योभूतेभ्यः' इत्यादिवेदवचनश्रवणात् स्वभावं देहादीनां कर्तारं मन्यसे ०३ इससे ज्ञात होता है कि स्वभाव ही स्वभाववादियों के अनुसार देहादि का कर्ता है। स्वभाववादियों के अनुसार बाह्य पदार्थ कण्टकतीक्ष्णता आदि ही नहीं आत्मिक या भीतर के सुख - दुःखादि कार्य भी कादाचित्क होने से निर्हेतुक होते हैं।
जैनाचार्य मल्लवादी क्षमाश्रमण, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, हरिभद्रसूरि, उनके टीकाकार यशोविजय, तत्त्वबोधविधायिनी के टीकाकार अभयदेवसूरि और अज्ञात कृतिकार के द्वारा स्वभाववाद का प्रबल निरसन किया गया है, जिनके कतिपय तर्कों का संक्षेप यहाँ प्रस्तुत है
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