Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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१५० जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
उत्तरपक्ष- कार्य की उत्पत्ति में 'स्वयं कार्य' ही कारण है। इस मत से भी सिद्धान्तपक्षी नैयायिक असहमत है । घट की उत्पत्ति में स्वयं घट ही कारण है, यह मानना कैसे उचित हो सकता है, जबकि व्यवहार में हमेशा मिट्टी से घट बनता हुआ देखा जाता है । उत्पत्ति से पहले 'स्व' रूप उस वस्तु (कार्य) की सत्ता संभव नहीं होने से स्वयं कार्य ही अपनी उत्पत्ति में कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि जिस समय जिस वस्तु की अपनी ही सत्ता नहीं है, उस वस्तु में आगे के क्षणों में 'स्व' रूप उसी कार्य के उत्पादन की क्षमता नहीं होती। दो भिन्न वस्तुओं में रहने वाला पौर्वापर्य का संबंध कारण-कार्य में नियम से होता है। चूंकि यहाँ कारण और कार्य दोनों एक ही वस्तु है इसलिए पौर्वापर्य संबंध घटित नहीं होता है। इस प्रकार यहाँ कारण- कार्य सिद्धान्त ही दोषपूर्ण हो जाता है।
पूर्वपक्ष- अनुपाख्य यानी अप्रसिद्ध किसी पदार्थ से सभी कार्यों की उत्पत्ति होना, अकस्मात् का अर्थ है। अप्रसिद्ध अर्थात् कार्य के प्रति किसी नियत कारण का न होना, यह अकस्मात् रूप से कार्योत्पत्ति कहलाती है। जैसे- पट के प्रति तन्तु, घट के प्रति मिट्टी, धुएँ के प्रति अग्नि आदि प्रसिद्ध या नियत कारण हैं। इन नियत कारणों से कार्योत्पत्ति न होना आकस्मिक उत्पत्ति है।
उत्तरपक्ष- किसी भी वस्तु से किसी का उत्पन्न हो जाना मानेंगे तो एक ही वस्तु से सभी कार्य या सभी वस्तुओं से एक ही कार्य होने लगेगा। जैसे मिट्टी से वस्त्र, घट, पशु-पक्षी, मिट्टी, जल, आकाश, अग्नि, वायु आदि सभी का उत्पन्न होना या वस्त्र, पशु-पक्षी, मिट्टी, जल, आकाश, अग्नि, वायु आदि सभी से घट का ही उत्पन्न होना। किसी निश्चित कारण के उपस्थित होने पर नियमित रूप से उसी कार्य का होना उस वस्तु का 'उत्पत्ति काल' है। किन्तु किसी भी वस्तु को सभी कार्यों का कारण मान लेने पर पूर्वोक्त उत्पत्ति काल से पूर्व ही कार्य सम्पन्न हो जाएगा। जिससे कार्यों में नित्यत्व की आपत्ति होगी और कादाचित्कत्व (अकस्मात् ) अनुपपन्न हो जाएगा।
उपर्युक्त चारों अर्थो को पूर्णरूप से नैयायिक अस्वीकार करते हैं, किन्तु पाँचवें अर्थ स्वभाव के विशिष्ट स्वरूप को मानते हैं। उसकी चर्चा नीचे की गई है
पूर्वपक्षी के अनुसार नैयायिक नियत देश-काल रूप में स्वभाव को मानते हैं। पट के प्रति तन्तु, तुरी, वेमा आदि सभी साधन कारण हैं, फिर भी पट की उत्पत्ति तन्तुओं में ही होती है या घट की उत्पत्ति कपालों में ही होती है। इसके पीछे नियत देश वृत्तित्व कारण है। जिसका नियामक 'स्वभाव' को छोड़कर कोई अन्य कारण नहीं
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