Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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९४ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
देवता के समान ही राजा, साधु, ज्ञाति, वृद्ध, अधम, माता तथा पिता इन आठों के भेद होने से कुल ८ x ४ = ३२ भेद होते हैं।
परवादियों के इन ३६३ भेदों में से कालवाद की मान्यता को प्रतिपादित करने वाले निम्न भेद उभरकर आते हैंक्रियावादियों और अक्रियावादियों में कालवाद के भेद क्रियावादियों में
१. जीव स्वतः नित्य काल से २. जीव स्वत: अनित्य काल से ३. जीव परत: नित्य काल से ४. जीव परत: अनित्य काल से ५. अजीव स्वत: नित्य काल से ६. अजीव स्वत: अनित्य काल से ७. अजीव परत: नित्य काल से ८. अजीव परत: अनित्य काल से ९. आस्रव स्वतः नित्य काल से १०.आस्रव स्वतः अनित्य काल से ११.आस्रव परत: नित्य काल से १२.आस्रव परत: अनित्य काल से १३.बन्ध स्वतः नित्य काल से १४.बन्ध स्वत: अनित्य काल से १५.बन्ध परत: नित्य काल से १६.बंध परत: अनित्य काल से १७.संवर स्वतः नित्य काल से १८.संवर स्वतः अनित्य काल से १९.संवर परत: नित्य काल से २०.संवर परत: अनित्य काल से २१.निर्जरा स्वत: नित्य काल से २२.निर्जरा स्वतः अनित्य काल से २३.निर्जरा परत: नित्य काल से २४.निर्जरा परत: अनित्य काल से २५.पुण्य स्वत: नित्य काल से २६.पुण्य स्वत: अनित्य काल से २७.पुण्य परत: नित्य काल से २८.पुण्य परत: अनित्य काल से २९.पाप स्वतः नित्य काल से ३०.पाप स्वत: अनित्य काल से ३१.पाप परत: नित्य काल से ३२.पाप परत: अनित्य काल से ३३.मोक्ष स्वत: नित्य काल से ३४.मोक्ष स्वत: अनित्य काल से ३५.मोक्ष परत: नित्य काल से ३६.मोक्ष परत: अनित्य काल से
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